Madhavi Puri Vs Congress : कांग्रेस ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच पर नए आरोप लगाए. कांग्रेस ने कहा कि माधवी के पति धवल बुच को 2019 से 2021 के बीच ऑटोमोबाइल कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा (एमएंडएम) से 4.78 करोड़ रुपये मिले थे.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि सेबी ने इस दौरान (एमएंडएम) से जुड़े मामलों में चार आदेश जारी किए थे. यह तब हुआ जब धवल की पत्नी माधवी सेबी की सदस्य थीं.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि 2016-17, 2019-2020 और 2023-2024 तक माधवी पुरी ने अगोरा के जरिए 2.95 करोड़ कमाए. यह पैसा 6 कंपनियों- महिंद्रा एंड महिंद्रा, डॉ. रेड्डीज, पिडिलाइट, आईसीआईसीआई, सैंबकॉर्प और विसुलिगी एंड फाइनेंस से कमाया गया. ये सभी कंपनियां सेबी द्वारा सूचीबद्ध और विनियमित हैं और अगोरा की क्लाइंट भी हैं.
हालांकि, महिंद्रा एंड महिंद्रा ने इन आरोपों को झूठा बताया. कंपनी ने कहा- धवल को उनकी विशेषज्ञता के लिए नियुक्त किया गया था. हमने कभी भी सेबी से किसी तरह की सुविधा नहीं मांगी.
जयराम रमेश ने पीएम मोदी से पूछे 3 सवाल (Madhavi Puri Vs Congress)
- क्या प्रधानमंत्री जानते हैं कि माधबी पी बुच के पास अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड में 99% हिस्सेदारी है और वह महिंद्रा एंड महिंद्रा सहित सूचीबद्ध कंपनियों से भारी शुल्क ले रही है?
- क्या प्रधानमंत्री को इस विवादास्पद संगठन के साथ माधबी बुच के संबंध के बारे में पता है?
- क्या प्रधानमंत्री जानते हैं कि माधबी के पति रिटायरमेंट के बाद महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड से खूब कमाई कर रहे हैं?
इसके जवाब में महिंद्रा एंड महिंद्रा ने क्या कहा?
महिंद्रा एंड महिंद्रा ने कहा- कंपनी ने 2019 में धवल बुच को नियुक्त किया था. उन्हें सप्लाई चेन और सोर्सिंग से जुड़े उनके अनुभव के लिए चुना गया था. उन्होंने अपना ज्यादातर समय ब्रिस्टलकोन में बिताया.
फिलहाल धवल बुच इसके बोर्ड में हैं. वह माधवी पुरी बुच के सेबी प्रमुख बनने से करीब 3 साल पहले महिंद्रा ग्रुप में शामिल हुए थे. उन्हें दिया गया पैसा उनके अनुभव और प्रबंधन के लिए था.
जानिए क्या है सेबी और हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जुड़ा विवाद
सेबी यानी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड भारत सरकार की एक संस्था है. इसकी स्थापना वर्ष 1992 में शेयर बाजार के निवेशकों की सुरक्षा के लिए की गई थी.
जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग ने गौतम अडानी पर अपने समूह के शेयरों की कीमतें बढ़ाने के लिए ऑफशोर फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. अडानी ने आरोपों से इनकार किया, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. मामले की जांच का जिम्मा सेबी को सौंपा गया.
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