चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान ‘पिंजरे’ में बंद सीबीआई को स्वायत्ता देने की जरूरत बताई. कोर्ट ने कहा कि विपक्ष के अनुसार सीबीआई केंद्र सरकार के हाथों में एक राजनीतिक उपकरण बन गई है, जिसे आजाद करने की जरूरत है. सीबीआई को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की तरह स्वायत्तता होनी चाहिए.

हाईकोर्ट ने मौजूदा व्यवस्था में बदलाव को लेकर अपने 12 सूत्री निर्देशों में कहा कि यह आदेश ‘पिंजरे’ में बंद तोते सीबीआई को रिहा करने का प्रयास है. कोर्ट ने कहा कि एजेंसी की स्वायत्तता तभी सुनिश्चित होगी जब उसे वैधानिक दर्जा दिया जाएगा. इसके लिए भारत सरकार को अधिक शक्तियों एवं अधिकार क्षेत्र के साथ वैधानिक दर्जा देने वाले एक अलग अधिनियम के अधिनियमन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है. केंद्र सरकार प्रशासनिक नियंत्रण के बिना कार्यात्मक स्वायत्तता के साथ सीबीआई को स्वतंत्र करे.

दरअसल, सीबीआई की ओर से याचिका दायर की गई थी, जिसमें जिसमें कहा गया था कि एजेंसी लोगों की कमी जैसे बंधनों के साथ काम कर रही है. इस याचिका पर विचार के दौरान जस्टिस एन. किरुबाकरण और जस्टिस बी. पुगलेंधी की डिवीजन बेंच ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए सीबीआई के लिए अलग से बजट आवंटित करने की सिफारिश की है. साथ ही एजेंसी के निदेशक को सरकार में सचिव के बराबर पद देने की सलाह दी है.

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बेंच ने कहा कि सीबीआई प्रमुख को संबंधित मंत्री या प्रधानमंत्री को ही रिपोर्ट करना चाहिए. बेंच ने सीबीआई निदेशक को 6 हफ्तों के भीतर एक विस्तृत प्रस्ताव भेजने के साथ इस प्रस्ताव के मिलने के बाद केंद्र को तीन महीनों के भीतर उचित आदेश जारी करने  के लिए कहा. बता दें कि 1941 में गठित एजेंसी प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) को रिपोर्ट करती है. इसके निदेशक को तीन सदस्यीय पैनल द्वारा चुना जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं.

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