Maha Kumbh 2025, अमन शुक्ला. पौष शुक्ल पूर्णिमा यानी 13 जनवरी 2025, ये वो तारीख है जब 144 साल बात इतिहास खुद को दोहराएगा. करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु एक नदी के तट पर इकट्ठा होकर आस्था की डुबकी लगाएंगे. जहां गंगा-यमुना-सरस्वती नदी के संगम पर आध्यात्म और संस्कृति का मिलन होगा और साधु-सन्यासी, श्रद्धालु, पर्यटक सब मिलकर महाकुंभ 2025 के साक्षी बनेंगे. कुंभ का इतिहास बेहद प्राचीन है. युग-युगांतर से इसका आयोजन होता आ रहा है. इसका उल्लेख हमारे धर्मग्रंथों में तो है ही, साथ ही कुंभ अपने अंदर ऐसे इतिहास को समेटे हुए है जो काफी रोचक है. लल्लूराम डॉट कॉम के ‘महाकुंभ महाकवरेज’ की इस सीरिज में हम आपको ऐसे ही कुछ रोचक इतिहास के बारे में बता रहा हैं.

इसे भी पढ़ें : जब संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे वायसराय, पंडित मदनमोहन मालवीय से पूछा था खर्च, महामना बोले- ‘सिर्फ दो पैसे’

कुंभ की शुरुआत में हम जाएं तो इसकी शुरुआत समुद्र मंथन के बाद से हुई थी. जब समुद्र मंथन में अमृत कलश निकला था. तब इसे लेने की होड़ में देवता और दानव दोनों के बीच द्वंद हुआ. अमृत कलश को बचाने के लिए देवता इसे लेकर भागे. इस बीच छलकने की वजह से अमृत की कुछ बूंदें गिरी. ये बूंदें देश के चार कोनों में गिरी. जिसमें हरिद्वार, प्रयागराज का संगम, नासिक और उज्जैन शामिल है. तब से इन नदियों में स्नान का महत्व बढ़ गया. ये परंपरा युगों तक चली. अब आजादी से पहले के समय में झांके तो मुगल और अंग्रेजों के समय भी कुंभ का आयोजन उसी ठाठ-बाट के साथ होता रहा. लेकिन इस बीच कुंभ के आयोजन को लेकर मुगलों के मन में एक डर बैठ गया. ये डर अंग्रेजों के काल में भी बना रहा.

इसे भी पढ़ें : MahaKumbh Kalpvas : सृष्टि के सृजन के बाद ब्रह्मा जी ने भी किया था कल्पवास, क्या है कल्प शब्द का अर्थ, हर पूजा से पहले होता है इसका वर्णन

मुगलों को सताने लगा डर

मुगल काल में भी आस्था की डुबकी लगाने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ता रहा. इस बीच मुगल शासकों के मन में डर समा गया कि कहीं कुंभ की ये भीड़ विद्रोह का रूप ना ले ले. जिसके चलते मुगलों ने कुंभ पर सख्तियां लगानी शुरु कर दी. किसी ना किसी बहाने से मुगल हमेशा ये प्रयास करते रहे कि लोग यहां तक ना पहुंच पाएं. इतिहास में एक वाकया दर्ज है जो तैमूर से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि 1398 में तैमूर ने हरिद्वार में गंगा किनारे कुंभ के लिए पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालुओं के खून से गंगा नदी को लाल कर दिया था. इसका जिक्र ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ नाम की एक किताब में मिलता है.

इसे भी पढ़ें : Mahakumbh 2025 : क्या आप जानते हैं अर्ध कुंभ, कुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या है अंतर?

अंग्रेजों के जहन में बरकरार था ये खौफ

मुगलों का शासन खत्म हुआ तो देश में अंग्रेजों के रूप में आक्रांताओं ने पैठ जमाना शुरु किया. लेकिन उनके अंदर में भी कहीं ना कहीं मुगलों वाला डर था. उन्हें भी आस्था का ये सैलाब देखकर लगता था कि इससे उनकी हुकूमत हिल सकती है. नतीजन कभी ट्रेन की मनाही की तो कभी दूसरे बहाने से अंग्रेज कुंभ पर पाबंदियां लगाने लगे. हालांकि इन सबके बाद भी श्रद्धालु अपनी आस्था पर अडिग रहे और कुंभ में डुबकी लगाई. गंगा स्नान को लेकर अंग्रेजों की इस नफरत को देखते हुए महात्मा गांधी ने 1918 में प्रयागराज में हुए कुंभ में स्नान किया था.