जयपुर. डूंगरपुर जिले में आदिवासियों का महाकुंभ कहे जाने वाला राष्ट्रीय बेणेश्वर मेले का बुधवार से आगाज हो गया है. इसे लेकर मंगलवार को उदयपुर संभागीय आयुक्त राजेन्द्र भट्ट और आईजी प्रफुल्ल कुमार ने कलेक्टर लक्ष्मी नारायण मंत्री और एसपी राशि डोगरा डूडी के साथ बेणेश्वर मेले की व्यवस्थाओं का जायजा लिया. इस दौरान उन्होंने मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधाओं, पार्किंग व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था और सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी ली. वहीं मेले में आने वाले श्रद्धालुओ को किसी भी प्रकार की असुविधा ना हो इसको लेकर निर्देश दिए. बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा 5 फरवरी को मुख्य मेला भराएगा. मुख्य मेले के दिन धाम पर श्रद्धा का ज्वार उमड़ेगा. माघ पूर्णिमा पर श्रद्धालु सोम-माही-जाखम नदी के त्रिवेणी में तर्पण कर दिवंगतों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं. आपको बता दें कि राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश से श्रद्धालु बेणेश्वर धाम मेले में लाखों की संख्या में पहुंचते है. और सोम-माही-जाखम नदी के त्रिवेणी संगम में तर्पण कर आस्था की डुबकी लगाते हैं.

बेणेश्वर देश में आदिवासियों के बड़े मेलों में से एक है. जहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं. माही, सोम और जाखम नदियों के संगम पर माघ शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता हैं. जो डूंगरपुर शहर से 38 किमी की दूरी पर हैं. मेले के दौरान बाणेश्वर महादेव का मंदिर सुबह पांच बजे से रात के 11 बजे तक खुला रहता है. सुबह के समय शिवलिंग को स्नान कराने के बाद केसर का भोग लगाया जाता है और उसके आगे जलती अगरबत्ती की आरती की जाती है. शाम को लिंग पर ‘भभुत’ (राख) लगाया जाता है और महीन बाती वाला दीपक जलाकर आरती की जाती है. भक्त गेहूं का आटा, दाल, चावल, गुड़, घी, नमक, मिर्च, नारियल और नकदी चढ़ाते हैं. बाणेश्वर मेले में भाग लेने वाले भील हर रात अलाव के आसपास बैठकर ऊंची आवाज में पारंपरिक लोक गीत गाते हैं. कल्चरल शो का आयोजन कबीले के युवाओं द्वारा किया जाता है. कार्यक्रम में भाग लेने के लिए ग्रामीणों के समूहों को भी आमंत्रित किया जाता है.

दुनियाभर में आदिवासी संस्कृति की पहचान का यह सबसे बड़ा धाम हैं, इसलिए इसे आदिवासियों का कुम्भ भी कहा जाता हैं. प्राकृतिक मनोरम स्थली के बीच बने बेणेश्वर धाम में विभिन्न संस्कृतियों का नजारा देखते ही बनता हैं. बताया जाता हैं कि पिछले तीन सौ वर्षों से लगातार यहां पर मेला भरता हैं. इस धाम पर भारत के विभिन्न क्षेत्र मुख्यतः उतरी भारत से अलग-अलग संप्रदाय, पंथो, महाजन ,भक्तगण और श्रद्धालु इस मेले के शुभारंभ के मौके पर यहां पहुंचते हैं. रात में यहां लोक नृत्य में भक्त शामिल होते हैं. दूर दराज से भक्त गण यहां अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं. भक्ति समागम में मावजी, कबीर और मीरा के भजन रातभर गूंजते हैं. सालभर एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या, संक्रांतियों और कई पर्व और त्यौहारों पर बेणेश्वर के पवित्र संगम तीर्थ में स्नान का यह रिवाज कई सदियों से चला आ रहा है, लेकिन माघ महीने में बेणेश्वर धाम की स्नान परंपरा का विशेष महत्व रहा है.