Padmanabhaswamy Temple: 270 वर्षों बाद एक दुर्लभ और अत्यंत पवित्र अनुष्ठान ‘महाकुंभभिषेक’ 8 जून 2025 को केरल के ऐतिहासिक और दुनिया के सबसे अमीर मंदिर पद्मनाभस्वामी मंदिर में आयोजित होने जा रहा है. यह अनुष्ठान वैदिक परंपरा, शुद्धता और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय संगम होगा, जो हजारों श्रद्धालुओं और संतों को आकर्षित करेगा.

क्या है महाकुंभभिषेक का महत्व?

‘महाकुंभभिषेक’ मंदिर की दिव्यता और ऊर्जा को पुनः जागृत करने का विशेष वैदिक अनुष्ठान है, जो केवल सदियों में एक बार होता है. इस दौरान देवता की मूर्ति, मंदिर की संरचना और पूरे परिसर को शास्त्रानुसार विशेष मंत्रों, अभिषेकों और यज्ञों से शुद्ध किया जाता है.

अनुष्ठान की खास बातें

नवनिर्मित तजिकाकुडम का अभिषेक- मंदिर की संरचना में नये जोड़े गये इस भाग को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरने हेतु वैदिक विधि से अभिषेक किया जाएगा.

विश्वसेन की मूर्ति की पुनः स्थापना- यह मूर्ति श्री पद्मनाभस्वामी के रक्षक के रूप में जानी जाती है. इसकी पुनः स्थापना मंदिर के आध्यात्मिक संतुलन को सुदृढ़ बनाएगी.

तिरुवंबाडी श्रीकृष्ण मंदिर में अष्टबंध कलसम- यहां की मुख्य मूर्ति के नीचे ‘अष्टधातु’ और दुर्लभ जड़ी-बूटियों से विशेष आधार तैयार किया जाएगा, जो मूर्ति की स्थायित्व शक्ति को बढ़ाता है.

270 साल बाद ही क्यों हो रहा है महाकुंभाभिषेक?

वैदिक परंपरा में कुंभाभिषेक एक नियमित अनुष्ठान है, जो मंदिर के निर्माण या जीर्णोद्धार के बाद किया जाता है. आमतौर पर यह हर 12 वर्षों में पुनः किया जाता है ताकि मंदिर की ऊर्जा और पवित्रता बनी रहे. लेकिन महाकुंभाभिषेक उससे भी विशेष होता है. यह तब किया जाता है जब मंदिर के संरचनात्मक हिस्सों में बहुत बड़े बदलाव हों, कोई विशेष मूर्ति पुनः स्थापित की जाए, या लंबे समय बाद मंदिर के आध्यात्मिक संतुलन को संपूर्ण रूप से जागृत करना हो. ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार, पद्मनाभस्वामी मंदिर में पिछला महाकुंभाभिषेक 1755 में त्रावणकोर राजवंश के काल में हुआ था.