शब्बीर अहमद, भोपाल। मध्मप्रदेश में महाशिवरात्रि का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। प्रदेश के प्राचीन मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की भीड़ दशर्न-पूजन के लिए लगी हुई है। भगवान भोलेनाथ की बारात में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी शामिल हुए।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज उत्साह और आनंद का माहौल है। कोरोना के कारण सही तरीके से पर्व नहीं मना पा रहे थे। भोले भंडारी की कृपा है अब सब कंट्रोल में है। चारों तरफ उत्साह और उल्लास का वातावरण है। शिव भक्ति में सभी भक्त डूबे हुए हैं।
विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में आज 21 लाख दीपक जलाए जाएंगे। अद्भुत छटा का पल रहेगा आज बाबा महाकाल की नगरी में।
कुमार इंदर, जबलपुर। शहर में महाशिवरात्रि को लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह है। जबलपुर स्थित कचनार सिटी में बाबा शिव के धाम में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। भोले बाबा की 76 फीट ऊंची मूर्ति श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।
इधर भोजपुर महादेव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगी हुई है। यहां 1 लाख भक्तों के पहुंचने की उम्मीद है। 2 किमी से भी ज़्यादा लम्बी लाइन में लगे हुए है भक्त। सुबह चार बजे से दर्शन के लिए लोग कातर में खड़े नजर आए। संस्कारधानी जबलपुर में एक शिव भक्त ने बेल्जियम से विश्व का दूसरा स्फटिक शिव लिंग लाकर स्थापना की है।
जबलपुर में देश का सबसे बड़ा तीसरा और विश्व का दूसरा स्फटिक शिवलिंग है। इसकी स्थापना जबलपुर के वकील नरेन्द्र निखारे ने अपने यादव कालोनी स्थित घर पर की है, जो अपने आप में अनोखा शिवलिंग है। यह शिवलिंग हिमालय की गोद में पाया जाता है। इस स्फुटिक शिवलिंग की मान्यता है कि जहां पर इसकी स्थापना होती है वहा पर लक्ष्मी का वास हो जाता है साथ ही एक वैज्ञानिक तथ्य भी है कि इसकी रासायनिक क्रिया से असाध्य बीमारी भी दूर हो जाती है।
बता दें की पहला स्फटिक शिवलिंग काश्मीर के अक्षर धाम मंदिर में है दूसरा जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज ने अपने जन्म स्थल जिला सिवनी के दिघोरी और तीसरा जबलपुर में 30 इंच के शिवलिंग जिसकी कीमत लाखो में है। इसे बेल्जियम से लाकर अपने घर पर स्थापना की है। इस शिव लिंग के बारे में मान्यता है कि स्फटिक शिव लिंग में माता पार्वती और शिव के दिव्य नेत्र के दर्शन होते हैं। स्फटिक शिवलिंग की खास बात यह है कि इसके पास आरती दिखाने पर माता पार्वती व भगवान शिव के दिव्य नेत्रों का भक्त दर्शन करते हैं। साथ ही वासुकीनाथ भी अपने अलौकिक रूप में नजर आते है।
जबलपुर का गुप्तेश्वर मंदिर जिसे रामेश्वरम के उपलिंग स्वरूप का मंदिर भी कहा जाता है, कहा जाता है कि, भगवान श्री राम ने यहां स्वयं शिवलिंग बनाया और उसका करीब 1 माह तक अभिषेक भी किया था। उसके बाद वे यात्रा के लिए आगे बढ़ गए थे।
मान्यता है कि इस मंदिर में आने वालों की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं। 14 साल के वनवास के दौरान उत्तर से दक्षिण की ओर रास्ते पर जब भगवान श्री राम निकले तब सुद्रीक्षण ऋषि के आश्रम में उनकी मुलाकात अनेक संतों और स्वयं ऋषि जबाली से हुई। जबाली ऋषि ने भगवान राम के वनवास का स्मरण किया तो पता चला कि ये पूरा कुचक्र मंथरा ने कैकई के द्वारा कराया था।
स्वामी मुकुंददास महाराज, पुजारी, गुप्तेश्वर मंदिर ने बताया कि भगवान राम को कुचक्र में फंसाने को लेकर ऋषि जबाली सहित अन्य साधु संत भी क्रोधित हो गए थे। तब भगवान श्री राम ने सभी को शांत कराने के लिए दिव्य दर्शन दिए और उनकी वर्षों की तपस्या का अहसास कराया। श्री राम ने संतों और ऋषियों को क्रोध से दूर रहने की सलाह दी। इसके बाद महर्षि जबाली को आत्मग्लानि हुई और वे पश्चाताप के लिए नर्मदा तट की नगरी जबलपुर पहुंचे। जिसका प्रमाण शिवपुराण के कोटि रूद्र संहिता के पहले अध्याय के 37वें और 42वें श्लोक मे साफ रूप से मिलता है।
जबलपुर के गुप्तेश्वर मंदिर में आज भी भगवान राम के हाथों से बना वो शिवलिंग मौजूद है जिसे की मां नर्मदा की रेत से उन्होंने अपने हाथों से बनाकर स्थापित किया था। बताया जाता है कि अपने वनवास के दौरान ज्यादातर समय वह गुप्तवास में रहते थे जिसके कारण ही इस मंदिर का नाम गुप्तेश्वर मंदिर पड़ा। रामचरितमानस और विशिष्ट रामायण मे भी इसका उल्लेख पाया जाता है, भगवान राम ने गुप्तेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना की और उसका अभिषेक भी किया।
जानकर बताते है कि कभी रानी दुर्गावती भी इस गुफा में पूजन करने के लिए आया करती थी। उनके गुरु स्वामी नरहरिदास कहते थे कि जब कोई परेशानी हो तो यहां आकर बता देना। इसके बाद वर्ष 1829 में यहां क्षेत्रीय बच्चे खेलते हुए पहुंचे और गुफा के सामने का पत्थर अलग कर दिया। तब से भगवान का पुन: प्राकट्य माना जाता है। तब से यहां अनवरत पूजन-अर्चन का दौर चल रहा है। यहां भगवान का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है।
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