रायपुर. प्रदेश के पूर्व मंत्री व भारतीय जनता पार्टी के नेता महेश गागड़ा ने प्रदेश सरकार द्वारा तेंदूपत्ता श्रमिकों को चरण पादुका वितरण बंद करने पर कड़ा ऐतराज जताया है. गागड़ा ने कहा कि इस फैसले को लेकर प्रदेश सरकार न केवल संवेदनहीनता का परिचय दिया है, अपितु आदिवासी-गरीबों-मजदूरों के प्रति अपने दोहरे राजनीतिक नजरिए को स्वयं बेनकाब कर दिया है.

पूर्व मंत्री गागड़ा ने सवाल किया कि क्या वर्तमान कांग्रेस सरकार चरण पादुका वितरण योजना के उद्देश्य और मर्म को समझती भी है या हमेशा की तरह वे हर बात को सिर्फ रुपए और पैसों से ही तौलती है? चरण पादुका वितरण योजना का असल उद्देश्य है कि घने जंगलों में कई कई घंटों तक तेंदूपत्ता संग्रहण के उस मुश्किल काम में लगे हमारे प्रत्येक तेंदूपत्ता संग्राहक को पैरों को छलनी कर देने वाले कांटो-पत्थरों और विषैले सांपो और बिच्छुओं से सुरक्षा मिल सके. घने जंगलों के बीच जब एक कांटा भी चुभ जाए या पैरों में पत्थर से जरा-सी चोट भी लग जाए तो संगृहीत सामग्री अपने सिर पर उठाकर घर तक वापस पहुंचना कितना मुश्किल होता होगा. इसका अंदाजा प्रदेश की कांग्रेस सरकार नहीं लगा सकती.

अगर सांप के काटने या बिच्छू के डंक मारने की घटना हो जाए तो कितनी कठिनाई होगी. जंगलों में और दूर दराज के गांवों में जहाँ चिकित्सा की सिर्फ आधारभूत सुविधा ही उपलब्ध है, वैसी जगह में मात्र एक जोड़ी जूते या चप्पल किसी व्यक्ति को कितनी कष्टदायक परिस्थितियों से बचा सकते हैं. सुरक्षा दे सकते हैं, इसकी कल्पना तो कीजिये. गागड़ा ने कहा कि वह स्वयं इस दर्द और तकलीफ को अच्छी तरह से जानते हैं, क्योंकि वह घने जंगलों की गोद में पले-बढ़े हैं.

पूर्व मंत्री ने कहा कि चरण पादुका के स्थान पर नगद पैसा देना सुविधा का कोई विकल्प न तो है और न ही होना चाहिए. हमारी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार प्रत्येक तेंदूपत्ता संग्राहक को चरण पादुका देकर सुरक्षा सुविधा पहुंचाती थी, एक समान सुरक्षा सुविधा. क्या ऐसा लगता है कि जो रुपए बंटेंगे, वे समान रूप से सब तक पहुंच जाएंगे? उन्होंने पूछा कि वर्तमान सरकार ग्रामीण आदिवासियों का हित चाहती है या सरकारी खजाने को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाना चाहती है?