चंद्रकांत देवांगन,दुर्ग। महिलाओं के सम्मान के लिए आई बॉलीवुड की फ़िल्म “टॉयलेट एक प्रेम कथा” ने समाज की दकियानूसी सोंच पर वार कर समाज को बदलने की कोशिश जरूर कि, पर आज भी कुरीतियों की जड़े पूरी तरह खत्म नहीं हो पाई है. दुर्ग जिले के एक छोटे से गाँव में साहू परिवार के लिए “टॉयलेट बनाना एक टार्चर कथा” साबित हो रही है, जिसकी वजह से उनका सामाजिक बहिष्कार तक हो गया है.
प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक परिवार को घर के आंगन में शौचालय बनवाने की सजा सामाजिक बहिष्कार तक ले जा सकती है. ये बात आज के दौर में सुनने में अजीब सी जरुर लग सकती है, पर यह हकीकत दुर्ग जिले के पाटन ब्लाक के ग्राम रीवागहन की है. जहाँ एक परिवार के 16 सदस्यों को इसकी सजा भुगतनी पड़ रही है. पीड़ित परिवार की सदस्य महिला पंच भी है. महिला पंच गनेशिया बाई ने अपने बहू बेटियों के सम्मान व बाहर शौच जाने की समस्या के चलते सरकार की योजना में सहभागिता दिखाते हुए शौचालय का निर्माण अपने घर के आंगन में करवाया. जिसको लेकर गाँव के अरुण चंद्राकर, कुंजेश चंद्राकर, शत्रुहन साहू, नरेश यादव, पुरानिक साहू द्वारा आपत्ति की गई कि उक्त निर्माण शासकीय भूमि पर कराया गया है. इसे अवैध करार देते हुए पीड़ित परिवार निर्माण को तोड़ दे व अर्थदंड भी भुगतने को तैयार रहे. पीड़ित परिवार ने तुगलकी फरमान न मानते हुए अपने हक का रास्ता चुना व प्रशासन की शरण लेते हुए उक्त निर्माण के वैधानिक जांच के लिए गुहार लगाई. जिस पर पटवारी के द्वारा की जाँच भी की गई और शौचालय व गेट का निर्माण पटवारी द्वारा काबिज भूमि के पट्टे पर ही किया जाना बताया गया.
प्रशासन की यह रिपोर्ट गाँव के दकियानूसी सोच की हार बन गई, तो सरकारी आदेश को धत्ता बत्ता बताते हुए अपने आप को गाँव के हुक्मरान समझने वाले लोगों ने इस पर निजी आपत्ति दर्ज करते हुए इनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया. इसके बाद उन्होंने गाँव में बैठक करके पीड़ित परिवार पर अर्थदंड भी लगा दिया दंड देने के बाद भी इनकी प्रताड़ना कम नहीं हुई. गांव के लोगों की बैठक बुला कर इनके साथ किसी भी तरह की बातचीत, लेन- देन का व्यवहार बंद करवा दिया गया और फरमान न मानने वालो पर भी अर्थदंड लगा दिया. साहू परिवार के घर में अप्रैल माह में बेटी की शादी थी गाँव से संबंध नहीं होने की वजह से कोई आया गया तो नहीं उल्टा बारात के आने पर पानी का कनेक्शन भी काट दिया गया. पीड़ित परिवार के द्वारा पानी के कनेक्शन के लिए अर्थदंड दिए जाने के बाद ही पानी मिल पाया.
मानवता को शर्मशार करने वालो की प्रताड़ना की कहानी यही खत्म नहीं होती है. पीड़ित परिवार के स्कूली बच्चे से भी गाँव में पढ़ाई सम्बंधित कोई भी बातचीत नहीं करते है. अपनी शिक्षा संबंधित समस्या के लिए दुसरे गाँव के बच्चों से मदद लेनी पड़ती है. पीड़ित परिवार की गोद में खेलने वाले मासूम बच्चों को तो यह तक नही पता कि किस समाज मे उन्हें जन्म लेना पड़ गया है जो पैदा होने के बाद से समाज से बहिष्कृत है. बच्चों को पिलाने के लिए गाय दूध भी निकालने वाला गांव का यादव भी घर नहीं आता. यही नहीं पीड़ित परिवार का इलाज भी उस क्षेत्र में तैनात चिकित्सक नहीं करता. इस कदर नारकीय जीवन जीने को मजबूर इस परिवार के पास फरियाद लगाने सरकारी दफ्तरों के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा है.
पीड़ित परिवार एसपी, कलेक्टर, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद समेत कई दरवाजे पर अपनी गुहार लगा चुके है, पर अब तक इस मामले में उन्हें न्याय नहीं मिल पाया है. बीते दिन मीडिया के द्वारा मामला पुलिस अधीक्षक अजय यादव के संज्ञान में ले जाने के बाद उन्होंने जांच की बात कहते हुए अपने अधिकारियों को मामले में हस्तक्षेप कर कार्यवाही के निर्देश भी दिए. जिस पर एसडीओपी पाटन आकाश राव गिरेपुंजे के व थाना प्रभारी रानीतराई गाँव में पहुंचकर बैठक में ग्रामीणों से जानकारी भी ली. एसडीओपी ने क्षेत्र के 5 दुकानदारों को बुलाकर व्यवहार व लेने देन शुरू करने के निर्देश दिए. वही गाँव के यादव को गाय चराने व दूध निकालने का कार्य जारी रखने की हिदायत दी. पुलिस की पहल से रखी गयी पीड़ित परिवार व गांव वालों के बीच सुलह का कोई रास्ता निकलता नहीं दिखा.
गाँव के सरपंच की माने तो पीड़ित परिवार के साथ जो हो रहा है वह गलत हो रहा है. उन्होंने भी इस तरह के अमानवीय व्यवहार की निंदा करते हुए बताया कि चंद लोग अपने आप को गाँव का ठेकेदार समझते है. राजनीतिक के संरक्षण में पल रहे समाज को खोखला करने वाले दकियानूसी विचार अपने को कानून व सँविधान से ऊंचा समझते है. इसलिये पीड़ित परिवार को 9 माह बीतने के बाद भी न्याय नहीं मिल पा रहा है.