फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य तो हैं, लेकिन राज्य की जो सबसे बड़ी चुनौती है वो है कुपोषण. राज्य के बस्तर जैसे खनिज संपदा इलाका भारी कुपोषण से ग्रसित रहा है. बस्तर के साथ मैदानी इलाकों में राजनांदगांव और बालोद का क्षेत्र भी कुपोषण से प्रभावित रहा है. इसी तरह से उत्तर छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में भी कुपोषण एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन अब वैसी नहीं, जैसी पहले रही है. समस्या का तेजी से समाधान जारी है. क्योंकि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान निरंतर जारी है.

छत्तीसगढ़ में कुपोषण को कम करने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान अब तक सफल रहा है. बीते 3 वर्षों में छत्तीसगढ़ में कुपोषण में भारी कमी आई है. सरकारी आँकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में प्रदेश के लगभग दो लाख 11 हजार बच्चे कुपोषण के चक्र से बाहर आ गए हैं, जबकि वर्ष 2019 में इस अभियान के शुरू होते समय कुपोषित बच्चों की संख्या 4 लाख 33 हजार थी. इस प्रकार कुपोषित बच्चों की संख्या में 48 प्रतिशत की कमी एक उल्लेखनीय उपलब्धि है.

वास्तव में यह कमी इस बात को दर्शा रही है कि सुपोषण अभियान का क्रियान्वयन प्रदेश में पूरी गंभीरता और ईमानदारी के साथ जारी है. सरकार या कहिए कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं ही अभियान की निगरानी करते रहते हैं. आज से तीन वर्ष पूर्व जब 2019 में इस अभियान की शुरुआत बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले से हुई थी. तब छत्तीसगढ़ में इस बात की चिंता की जा रही थी कि कुपोषण का दाग से छत्तीसगढ़ में कितनी तेजी से मिटाई जाए. आज तीन वर्षों बद जब परिणाम सकारात्मक आने लगे हैं, तो कुपोषण की दर में लगातार कमी आने लगी है. यह कहा जा सकता है कि आने वाले कुछ वर्षों में राज्य में कुपोषण की स्थिति भारी कमी आ जाएगी. कुपोषण के साथ प्रदेश में लगभग 85 हजार महिलाएं एनीमिया से भी मुक्त हो चुकी हैं.

आंकड़ों पर एक नजर

वर्ष 2015-16 में जारी राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण-4 के आंकड़े देखें तो प्रदेश के 5 वर्ष से कम उम्र के 37.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषण और 15 से 49 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं. वर्ष 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया.

इस प्रकार वर्ष 2016 से 2018 के मध्य कुपोषण कम होने के बजाय 2.3 प्रतिशत बढ़ गया. कुपोषित बच्चों में अधिकांश आदिवासी और दूरस्थ वनांचलों के थे. राज्य सरकार ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत 2 अक्टूबर 2019 से की.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के 2020-21 में जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 5 वर्ष तक बच्चों के वजन के आंकड़े देखे तो कुपोषण की दर 6.4 प्रतिशत कम होकर 31.3 प्रतिशत हो गई है. यह दर कुपोषण की राष्ट्रीय दर 32.1 प्रतिशत से भी कम है.

वजन त्यौहार के आंकड़े देखें तो वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ में कुपोषण 23.37 प्रतिशत था, जो वर्ष 2021 में घटकर मात्र 19.86 प्रतिशत रह गया है. इस प्रकार कुपोषण की दर में दो वर्षों में 3.51 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जो कुपोषण के खिलाफ शुरू की गई जंग में एक बड़ी उपलब्धि है.

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक ही जुलाई 2021 में आयोजित वजन त्यौहार में लगभग 22 लाख बच्चों का वजन लिया गया था. इस दौरान पारदर्शी तरीके से कुपोषण के स्तर का आंकलन किया गया. डाटा की गुणवत्ता परीक्षण और डाटा प्रमाणीकरण के लिए बाह्य एजेंसी की सेवाएं ली गई थी. इसी तरह वर्ष 2022 में भी एक अगस्त से 13 अगस्त तक प्रदेश में वजन त्यौहार मनाया जा रहा है। इसके आंकड़ों के आधार पर प्रदेश में वर्तमान कुपोषण दर का आकलन किया जाएगा.

छत्तीसगढ़ में सुपोषण अभियान को सफल बनाने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है. सितंबर महीने को सुपोषण माह के रूप में मनाया जाता है. इसके विशेष पखवाड़ा का आयोजन किया जाता है. साथ ही आंगनबाड़ी केंद्रों में भी पोषण आहार पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. महिलाओं और बच्चों को गर्म और पौष्टिक आहार मिले यह सुनिश्चित किया गया है.

सरकार की ओर से डीएमएफ, सीएसआर और अन्य मदों की राशि का उपयोग किये जाने की अनुमति भी दी गई है. साथ ही जनसहयोग भी लिया गया है. योजना के तहत कुपोषित महिलाओं, गर्भवती और शिशुवती माताओं के साथ बच्चों को गरम भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. राशन में आयरन और विटामिन युक्त फोर्टीफाइड चावल और गुड़ देकर लोगों के दैनिक आहार में विटामिन्स और मिनरल्स की कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है.

वहीं गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक रेडी टू ईट और स्थानीय उपलब्धता के आधार पर पौष्टिक आहार देने की भी व्यवस्था की गई है. महिलाओं और बच्चों को फल, सब्जियों सहित सोया और मूंगफली की चिक्की, पौष्टिक लड्डू, अण्डा सहित मिलेट्स के बिस्कुट और स्वादिष्ठ पौष्टिक आहार के रूप में दिया जा जा रहा है. इससे बच्चों में खाने के प्रति रूचि जागने से कुपोषण की स्थिति में सुधार आया है.

कुपोषण में कमी लाने की दिशा में राज्य सरकार की ओर से संचालित अन्य योजनाओं को समाहित किया गया है. अन्य योजनाओं की मदद से कुपोषितों को पूरी मदद देने की कोशिश की गई है. मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना और मलेरिया मुक्त अभियान, दाई दीदी क्लिनिक योजना के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ एण्ड वेलनेस सेंटर, प्राथमिक एवं उप स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधाओं को विस्तार दिया गया है. इससे तेजी से महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के साथ कुपोषण स्तर में सुधार देखा जा रहा है.

वास्तव में छत्तीसगढ़ सरकार ने कुपोषण को राज्य की सबसे बड़ी चुनौती मानकर काम किया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी कहते रहे हैं कि राज्य में कुपोषण नक्सल समस्या से भी बड़ी चुनौती है. इस चुनौती से निपटने की दिशा में सरकार के साथ समाज को मिलकर काम करना होगा. राज्य से कुपोषण के दाग को मिटाकर एक स्वस्थ्य छत्तीसगढ़, नवा छत्तीसगढ़ बनाना होगा.

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