रोहित कश्यप, मुंगेली. गुरु परंपरा के नियम का लोगों को निष्ठा पूर्वक पालन करना चाहिए. नियम को निष्ठापूर्वक मानने से ठाकुर जी भी खूब निभाते हैं. संसार की थपेड़े और लहरें तो आती ही रहती है. इसके परवाह किए बिना भगवत आराधना करते रहना चाहिए. सांसारिक माया से मुक्ति का एक मात्र उपाय यही है. यह प्रवचन संस्कार ग्राम बांकी में श्रीमद् भागवत के पांचवें दिन जगतगुरु मलूकपीठाधीश्वर स्वामी राजेन्द्र दास महराज ने दी. उन्होंने कहा कि जो वैराग्य धारण कर चुका है उसके लिए आचरण और वृति की पवित्रता अति आवश्यक है. साथ ही जो गृहस्थ आश्रम में है उसके लिए भी जिह्वा और मनोविकार पर अंकुश आवश्यक है. अन्न की शुद्धता का महत्व बताते हुए स्वामी ने कहा कि गौ आधारित खेती इसके सबसे अच्छे उपाय है. जैसे अन्न खाएंगे वैसा मन होगा, जैसा पिएंगे पानी वैसे निकलेगी बानी. इसलिए अन्न और जल की शुद्धता आवश्यक है. आज रसायन युक्त भोजन ग्रहण कर और अशुद्ध तरल पेय का प्रभाव है कि तन और मन दोनों अनेक प्रकार के विषाक्त विकारों के कारण कष्ट उठाना पड़ रहा हैं.

शरणागति सम्पूर्ण समाधान है. जब विशेष विपत्ति से घिर जाएं तो शरणागति से अच्छा उपाय कुछ नहीं है. ईश्वर को अपना सम्पूर्ण समर्पित कर ईश्वर कृपा मानकर अपने आपको छोड़ देना चाहिए. उन्होंने बताया कि जब ब्रज के समस्त गोपालों के ऊपर पूतना के रूप में विपत्ति आयी तो बाल्यवस्था में ही ठाकुरजी ने ब्रज की विपत्ति दूर करने के लिए पूतना का उद्धार किए. ईश्वर के प्रति समर्पण का परिणाम हमेशा अच्छा होता है. अगर कोई उच्चकुल में पैदा होकर काम, क्रोध, मद, लोभ जैसे विकारों से युक्त है तो वह स्पर्श के लायक नहीं है, लेकिन जो निम्नकुल में अगर पैदा होकर भगवत आराधना करे, तुलसी माला धारण करे, ललाट में तिलक धारण करे और मन, वाणी और कर्म से भगवत भक्ति में लीन हो तो वो व्यक्ति वंदनीय है. ये ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रभाव है.

स्वामी राजेन्द्र जी महाराज ने दावे के साथ कहा कि देश की सरकार गौमांस बेचकर जितना कमा रहे हैं, उससे अधिक वेद लक्षणा गायों के गौमूत्र और गोबर पर अनुसंधान कर विदेशों से धन कमाया जा सकता है. आज गौरक्षा और गौमाता पर अनुसंधान पैसा कमाने का साधन बन गया है. आज तक केवल गौमाता के नाम पर लूट हुआ है. वेदलक्षणा गौवंश का संरक्षण और गौमूत्र व गोबर पर अनुसंधान अति आवश्यक है. तभी व्यक्ति स्वस्थ और निर्विकार रह सकता है. उन्होंने कहा कि आज धार्मिक कार्य भी दिखावे मात्र बन गया है. यहां के वैदिक सनातन धर्म से विमुख होने का परिणाम है मानसिक विकार उत्पन्न हो रहे हैं. और देश इन्हीं कारणों से आतंकवाद और नक्सलवाद से जल रहा है. जब संत को देखकर मन मे प्रेम उत्पन्न हो तो समझ जाओ भगवत कृपा हो रही है.

उन्होंने बताया कि मां तो मां होती है. एक रोज भगवान श्रीकृष्ण की मां यशोदा को लगा कि लाला ज्यादा दूध पी लिया है इसलिए अपच हो गया है. तब श्रीकृष्ण ने जम्हाई लेते हुए अपने मुख के अंदर मां को सम्पूर्ण विश्व का दर्शन कराया. वे मां को ये बताना चाहते हैं कि मां पूरा विश्व की उत्पत्ति मेरे से हुई है. मुझे दूध पीने से क्या अपच होगा. श्रीकृष्ण ने बाल्यवस्था में ही यमलार्जुन का उद्धार किए. बकासुर, अघासुर जैसे राक्षसों का उद्धार किए.