नई दिल्ली . दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में जमानत देने से इनकार करने के शीर्ष अदालत के 30 अक्टूबर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है. सिसेदिया ने दलील दी है कि सीबीआई और ईडी द्वारा सौंपे गए दस्तावेजों के आधार पर उनके खिलाफ कोई केस नहीं बनता है. उन्होंने अदालत को आदेश पर पुनर्विचार करने के लिए कम से कम 15 आधार लिए हैं. सिसोदिया पर शराब डीलरों को फायदा पहुंचाने के लिए दिल्ली की आबकारी नीति में बदलाव करने का आरोप है.

शीर्ष अदालत ने 30 अक्टूबर के फैसले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था. अब पुनर्विचार याचिका में उन्होंने दलील दी है कि उन्हें जमानत देने से इनकार करने का आधार ‘गलत’ था. इस घटनाक्रम से वाकिफ लोगों का कहना है कि जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ द्वारा दिए गए शीर्ष अदालत के आदेश पर पुनर्विचार के लिए सिसोदिया ने कम से कम 15 आधार लिए हैं. पिछले हफ्ते वकील विवेक जैन के जरिए दायर याचिका में कहा गया है, ‘रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटियां हैं जो पुनर्विचार का आधार बनती हैं.’

पीठ ने निष्कर्ष पर पहुंचते हुए 30 अक्टूबर को कहा था, ‘हमने कुछ ऐसे पहलुओं को देखा है जो संदिग्ध हैं. लेकिन 338 करोड़ की धनराशि के हस्तांतरण के संबंध में एक पहलू अस्थायी रूप से सामने आता है. इसलिए हमने जमानत याचिका खारिज कर दी है.’ अदालत ने सीबीआई के आरोप पत्र का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि पुरानी उत्पाद शुल्क व्यवस्था के तहत, थोक वितरकों द्वारा अर्जित कमीशन 5 प्रतिशत था जिसे आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा लाई गई उत्पाद शुल्क नीति के तहत बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया था. विवाद होने पर नवंबर 2021 में इस नीति को वापस ले लिया गया.

सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया है, ‘थोक वितरकों द्वारा अर्जित 7 प्रतिशत कमीशन/शुल्क की अतिरिक्त राशि 338 करोड़ रुपए एक लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत परिभाषित अपराध है.’ ईडी के अनुसार, ये अपराध की आय थी जिसके आधार पर सीबीआई ने तर्क दिया, ‘नई उत्पाद शुल्क नीति का उद्देश्य कुछ चुनिंदा थोक वितरकों को अप्रत्याशित लाभ देना था, जो बदले में किकबैक और रिश्वत देने के लिए सहमत हुए थे.’