वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। देश को आजाद कराने में अनेक जननायकों की भूमिका रही है. इन्ही जननायकों में से एक हैं छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद बीरनरायन सिंह. आज ही के दिन 10 दिसंबर को बीरनरायन सिंह के शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं. छत्तीसगढ़ की आन-बान-शान के लिए अपने आपको कुर्बान करने वाले बीरनरायन इस धरा के सच्चे त्यागी बेटे थे. भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज छत्तीसगढ़ की धरा से हुए अगर यह कहे तो यह गलत नहीं होगा. क्योंकि सन् 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन से पहले यहाँ के आदिवासी शुरवीरों ने अँग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूँक दिया था. फिर चाहे बात गैंद सिंह की करे या फिर बीरनरायन सिंह की. हालांकि प्रदेश के इन दोनों वीरों को भारतीय इतिहास में उस रूप में जगह नहीं मिल पाई जो आज मंगल पाण्डेय, भगत सिंह या चंद्रशेखर आजाद को है. लेकिन जिसने भी छत्तीसढ़ में 1856-57 के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को पढ़ा है वो नरायन सिंह की अमरगाथा को कभी भुला नहीं पाएगा.

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ये कहानी है इतिहास के उस दौर की जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत ने अपना कब्जा कर लिया था. अंग्रेज देश के सभी राज्यों में अपने शासन का विस्तार कर चुके थे. इसी दौर में छत्तीसगढ़ में भोसले शासनकाल में अंग्रेजों की राज स्थापना हो रही थी. छत्तीसगढ़ पहले से भोसले राज सत्ता से लड़ रहा था, अब उनके सामने अंग्रेजी सत्ता भी थी. इसी संघर्ष के बीच तब के रायपुर जिला और अब के बलौदबाजार जिले के सोनाखान में नरायन सिंह का जन्म हुआ.

ये बात है सन् 1795 की है. सोनाखान के जमीदार रामसाय के घर बीरनरायन का जन्म हुआ. बिंझवार आदिवासी समुदाय में जन्मा यह बालक आगे चलकर 1830 में सोनाखान का जमींदार बना. सन् 1818-19 में नरायन सिंह के पिता ने भोसले राजा के खिलाफ विद्रोह किया था, लेकिन उसे अंग्रेजों ने दबा दिया था. आदिवासियों को एकजुट कर संगठित शक्ति से अंग्रेजी हुकूमत के नाक में दम कर रखने वाले बिंझवार समुदाय के जमीदार और नरायन सिंह के पिता रामसाय की 1829-30 में निधन हो गया. पिता के विरासत को आगे बढ़ाते हुए सोनाखान की जमीदारी संभालकर नरायन सिंह ने आदिवासियों को अंग्रेजी सत्ता के आगे एकजुट रखा.

अपने न्यायप्रिय और समभाव व कर्मठता से आदिवासियों के दिल में बस चुके नरायन सिंह अंग्रेजी सत्ता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनते जा रहे थे. सन् 1854 में अंग्रेज शासन ने नए ढंग से कर(टकोली) लागू कर दिया. इस नए कर का नरायन सिंह ने कड़ा विरोध किया. नरायन सिंह के विरोध से अंग्रेजी हुकूमत में डिप्टी कमिश्नर इलियट बेहद नाराज हो गए.

सन् 1856, इस वर्ष छत्तीसगढ़ में भयंकर सूखा पड़ा. इतिहासकार डॉ रमेंद्र मिश्र बताते हैं कि अंग्रेजों के नए कर और अकाल के चलते सोनाखान का पूरा इलाका भूखमरी का शिकार हो गया. जनता त्राहि-त्राहि करने लगी. तब नरायन सिंह ने कसडोल के व्यापारी माखन सिंह से अनाज गरीबों में बांटने का आग्रह किया. लेकिन व्यापारी माखन नहीं माना और नरायन सिंह ने अनाज लूटकर लोगों में बंटवा दिया.

जमाखोरों ने इसकी शिकायत ब्रिटिश शासन से की ब्रिटिश शासन ने वीरनरायन सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर 24 अक्टूबर 1856 को संबलपुर से गिरफ्तार कर लिया और उसे रायपुर जेल में बंद कर दिया. लेकिन अंग्रेज अधिक दिन तक बीरनरायन को कैद कर नहीं रख सके और वे अंग्रेजों की कैद से फरार हो गए. इस दौरान अंग्रेज शासनकाल के खिलाफ आजादी के आंदोलन शुरू हो चुके थे. जेल में बंद बंदियों ने नरायन सिंह को अपना नेता मान लिया. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह बढ़ने लगा. अंग्रेजी अत्याचार के विरुद्ध आदिवासी एकजुट होने लगे. देशभक्त जेलकर्मियों के जरिए नारायन सिंह को उनके साथियों ने छुड़ा लिया.

1857 में जेल से मुक्त होने के बाद नरायन सिंह ने 500 सैनिकों का सैन्य दल बनाया. सैन्य दल बनाते ही बीरनरायन ने अंग्रेजी हुकूमत पर हमला बोल दिया. इलियट ने स्मिथ नाकम सेनापति को नरायन सिंह को गिरफ्तार करने भेजा. नरायन सिंह ने गुरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों पर ऐसा धावा बोला कि अंग्रेज सैनिक भाग खड़े हुए. लेकिन कुछ बेइमान जमीदारों की मदद से अंग्रेजों ने बीरनरायन को फिर से गिरफ्तार कर लिया. और फिर 10 दिसंबर 1857 को अंग्रेजों ने रायपुर के वर्तमान जय स्तंभ चौक पर फांसी दे दी थी.

हालांकि कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि बीरनरायन को फांसी रायपुर केंद्रीय जेल परिसर में दी गई थी. कुछ लोगों का यह भी कहना रहा है कि उन्हें फांसी नहीं तोप से उड़ा दिया गया था.  इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद रहे हैं. आजादी के महानायक बीरनरायन सिंह को शहदात दिवस के मौके पर लल्लूराम डॉट कॉम अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता है. आप जब कभी भी जय स्तंभ से गुजरे तो आजादी के इस महानायक की शहादत को जरूर सलाम करे.