कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के सहकारी बैंकों में बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, लेकिन ग्वालियर के जिला सहकारी बैंक में हुए भ्रष्टाचार की जांच आज भी अधर में लटकी हुई है. 100 करोड़ से अधिक के भ्रष्टाचार के आरोपों के बाबजूद सरकारी आंकड़ो में महज 27 करोड़ का भ्रष्टाचार होना माना गया है. सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार फर्जी लोन से जुड़ा हुआ है. जिसकी जांच और उससे जुड़ी हुई वसूली आज भी अधूरी है. जिस पर अधिकारी बस जांच जारी होने की बात कहते हुए नजर आते हैं.

दरअसल, सहकारिता से अंत्योदय तक जिस संकल्प को लेकर जिला सहकारी बैंक को स्थापित किया गया था. वह अब अधिकारी कर्मचारियों की सहकारिता से भ्रष्टाचार तक पहुंच गया. बीते कई सालों में जिला सहकारी बैंक में भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते रहे हैं, लेकिन इनकी जांच और दोषियों पर कार्रवाई की स्थिति हमेशा वरिष्ठ अधिकारियों की कृपा पाती रही है.

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  • वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री को लिखे गए एक शिकायत पत्र में बताया गया था कि गेहूं खरीदी के लिए प्राप्त राशि में लगभग 11 करोड़ का भुगतान नागरिक सहकारी बैंक की एफडी का कर दिया गया, जबकि भुगतान किसानों का ही होना था.
  • शाखा स्तर से बैंक द्वारा प्रचलित दर से अधिक दर पर नागरिक सहकारी बैंक की एफडी बनाई गई एवम उसका भुगतान भी मई जून 2018 में कर दिया गया था. यह भुगतान नागरिक सहकारी बैंक को गेंहूं खरीदी की राशि से किया गया था.
  • विपणन संघ से प्राप्त खाद की राशि, खाद बिक्री कर विपणन संघ को की जानी थी. जबकि संस्थाओं द्वारा प्राप्त खाद बिक्री कर राशि खुर्द बुर्द कर दी गयी. एवम उस राशि का भुगतान जिला विपणन संघ को उपार्जन की राशि से कर दिया गया.
  • शासकीय खरीदी में हुआ गड़बड़झाला, जिले में 59 वितरण केंद्र बनाये गए थे. जो 76 सोसाइटियों को कवर करते थे और सभी केंद्रों पर किसानों से खरीदी के दौरान 5 रुपये प्रति क्विंटल का कमीशन लेने का अभी आरोप लगा.
  • गेहूं खरीदी को लेकर बैंक को जिले की 76 सोसायटीयो से जितनी ऋण वसूली करनी थी और इन्हीं 76 सोसायटीयों को किसानों से जीतन ऋण वसूली की जानी थी उनमें 100 करोड़ से अधिक का अंतर पाया गया,.कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए, लेकिन लगभग 120 करोड़ से अधिक की वसूली की जांच में क्या हुआ अभी तक सवालों में जिंदा है.
  • किसानों के नाम पर फर्जी लोन बांट दिए गए. कई किसान ऐसे भी तैयार किये गए जो किसान थे ही नहीं. ऐसे मामलों की वसूली औऱ दोषियों पर कार्यवाही आज भी लंबित हैं.

बता दें कि इन भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए बैंक में देश की जानी मानी कंपनी के सॉफ्टवेयर के जरिए कोर बैंकिंग की शुरुआत कराई गई. लेकिन सूत्रों की माने तो बैंक सॉफ्टवेयर में ऐसी कई खामियां मौजूद रही जिसके चलते पहले लाखों में होने वाला भ्रष्टाचार करोड़ों में होने लगा है. यही कारण है कि बीते दिनों शिवपुरी जिले में सामने आए एक बार फिर भ्रष्टाचार के मामले के बाद प्रभारी डिप्टी कमिश्नर सहकारिता विभाग के अनुसार विवाद कोर बैंकिंग के सॉफ्टवेयर को अपडेट करने या फिर उसके स्थान पर दूसरे सॉफ्टवेयर के जरिए कोर बैंकिंग का विचार कर रहा है. ताकि इस तरह के भ्रष्टाचार मामलों पर रोक लगाई जा सके.

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पूर्व विधायक बृजेंद्र तिवारी ने जिला सहकारी बैंक में हुए गबन के मामले को लेकर ढाई साल से अधिक लंबा आंदोलन चलाया था. उनके द्वारा आरटीआई के जरिए एकत्रित किए गए. दस्तावेजों में यह बात सामने आई थी कि ऋण वसूली के मामले में 120 करोड़ से अधिक का गबन हुआ है. ऐसे में भोपाल से आई हुई टीम के साथ जिला प्रशासन द्वारा गबन की जांच कराई गई. जिसमें सामने निकल कर आया कि लगभग 40 से 60 करोड़ के बीच का बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है. भ्रष्टाचार की आंच में जल रहे एक बैंक के जरिए किसानों को मिलने वाली मदद भी पूरी तरह से खत्म हो गई है. जिनमें विशेष रूप से खाद और बीज नगद खरीदना पड़ रहा है.

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बता दें कि कांग्रेस पार्टी की ओर से भी इसको लेकर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. कांग्रेस का कहना है कि यह सब घोटाले भारतीय जनता पार्टी के बीते 15 सालों के काले कारनामे हैं. जिसमें उनकी पार्टी के ही कई लोग शामिल हैं. कमलनाथ सरकार में इन घोटालों की जांच को लेकर तेजी लाई गई थी, लेकिन एक बार वापस फिर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने इस जांच को रफा-दफा कर दिया. यही कारण है कि आज सहकारिता पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है. यही कारण है कि यह एक भ्रष्ट तंत्र बन गई है.

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मामले में सहकारिता विभाग के डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि इन घोटालों की जांच में जिन दोषियों के खिलाफ एफआईआऱ के आदेश हुए थे. उन पर FIR भी की गई, लेकिन उनमें से कुछ लोगों को हाईकोर्ट के जरिए रिलीफ मिला है. जिसके चलते जांच प्रभावित हुई है. पुलिस का भी जितना सहयोग मिलना चाहिए था उतना नहीं मिल रहा है. साथ ही पुलिस ने अभी तक मामले में चालान भी पेश नहीं किए हैं. ऐसे में आखिर यह चालान पेश क्यों नहीं किए गए यह तो बेहतर ढंग से पुलिस ही स्पष्ट कर सकती है.

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प्रभारी डिप्टी कमिश्नर अरविंद सिंह सेंगर के अनुसार मामले में जो दोषी कर्मचारी अधिकारी थे उन सभी को निलंबित किया गया. कुछ दोषी कर्मचारी अधिकारियों को सहकारिता विभाग के प्रशासक द्वारा बहाल कर दिया गया था. ऐसे प्रशासकों के खिलाफ भी कार्रवाई करते हुए उन्हें भी निलंबित किया गया जा चुका है. 27 करोड़ वसूली के प्रकरण में लगभग एक करोड़ 82 लाख की रिकवरी विभाग द्वारा की जा चुकी है. शेष रिकवरी की कार्यवाही अभी भी जारी है. साथ ही आरबीआई के द्वारा जारी किए गए नए सर्कुलर के आधार पर अब सभी जिला सहकारी बैंक को से जुड़ी सोसायटीओं की जानकारी उनके पोर्टल पर अपलोड करना आवश्यक किया गया है. ऋण वसूली के साथ भ्रष्टाचार की जांच का क्या स्टेटस है. उसकी रिपोर्ट भी उस पर अपलोड करना अनिवार्य की गई है. साथ ही दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई के साथ ऋण वसूली की पूर्ति जब तक नहीं हो जाती है, तब तक आरबीआई के पोर्टल पर प्रकरण को जारी रखते हुए कार्रवाई जारी रखी जाएगी.

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वहीं लंबित जांच और दोषियों पर आखिर कार्रवाई अभी तक लंबित क्यों है इन सवालों को लेकर जब ग्वालियर संभाग के कमिश्नर ने कहा कि वर्तमान समय में विभाग के डिप्टी कमिश्नर नहीं थे, लेकिन अब प्रभारी अधिकारी की नियुक्ति हो चुकी है. ऐसे में शिवपुरी जिले के साथ ग्वालियर जिले में हुए भ्रष्टाचार की जांच में तेजी लाने के साथ FIR के आदेश और जांच को जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिए हैं.

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बहरहाल किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए जिन जिला सहकारी बैंक की शाखाओं को ग्रामीण स्तर पर पहुंचाया था वहां से शहर तक भ्रष्टाचार से लिप्त मामलों की जांच आज भी जारी है. यही कारण है कि जिन उद्देश्य को लेकर इसकी शुरुआत की गई थी. उसका लाभ आज भी उन किसानों को नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में जांच अधिकारियों के ढीले रवैया के साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा चालान पेश ना करना और बैंक की कोर बैंकिंग मैं खामी. इन मामलों के दोषी अधिकारी कर्मचारियों पर अपनी कृपा बनाई हुई है. जिसके चलते जांच का सिलसिला आज भी जारी है. ऐसे में देखना होगा कि आखिर मध्य प्रदेश के सहकारिता विभाग के जिला सहकारी बैंक में हुए इन करोड़ों के घोटाले की जांच आखिर कब तक पूरी होती है या इसे भी सिर्फ फाइलों में ही दबा दिया जाएगा.

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