पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। 44 करोड़ की लागत से किए जा रहे नहर लाईनिंग कार्य में तकनीकी पहलुओं को नजरअंदाज किया जा रहा है. आलम यह है कि काम पूरा होने से पहले ही लाइनिंग में जगह-जगह दरारें आ गई है. कार्य की गुणवत्ता को लेकर नाराज सांसद जहां इस काम में बंदरबाट की बात कह रहे हैं, तो दूसरी ओर स्थानीय जनप्रतिनिधि ईई और ठेकेदार के बीच पार्टनरशिप में काम चलने का आरोप लगा रहे हैं.

जिले के पैरी दाई मुख्य नहर 45 किमी व फिंगेश्वर डिस्ट्रीब्यूटरी शाखा नहर 35 किमी पर 44 करोड़ लागत से चल रहे नहर लाइनिग कार्य फिर सुर्खियों में है. वर्ष 2019 में दोबारा शुरू हुई इस काम मे अब तक 40 किमी से भी ज्यादा लम्बा लाईनिंग कार्य हो चुका है, लेकिन काम में अमानक सामग्री के अलावा तकनीकी पहलुओं को अनदेखी की वजह से लाइनिग में जगह-जगह दरारें पड़ गई है.

जानकार बताते हैं कि लाइनिग में स्लोप बनाने के पहले मुरम डाल कर कॉम्पेक्सन व तराई नहीं किया गया. स्लोप ढालने के लिए अनुपातहीन सीमेंट कांक्रीट का मसाला बनाया गया. पेवर व वाईब्रेटर नहीं चलाने के कारण स्लोप के परत मजबूत नहीं हुई हैं. भरी गर्मी में स्लीपर व स्लोप बनाये गए, वहीं तराई नहीं की गई, जिसकी वजह से आज सीमेंट धूल बन कर उड़ने लगी है. अधिकांश जगह नहर के बेड लेबल में ड्रेन व पोरस ब्लॉक का निर्माण नहीं किया गया है.

5 अफसरों पर हुई थी कार्रवाई

बता दें कि इस कार्य को वर्ष 2009 में मंजूरी मिल गई थी. तब लागत 30 करोड़ रुपए थी. वर्ष 2011 तक लगभग 15 किमी का काम किया गया था. काम को लेकर की गई शिकायत पर जांच के बाद तत्कालीन ईई दिनेश भगोरिया समेत 2 एसडीओ और 2 सब इंजीनियर को निलंबित किया गया था. इसके बाद काम रोक दिया गया था. सरकार बदलते ही योजना में 48 प्रतिशत एवज राशि के साथ काम की लागत अब 44 करोड़ कर दी गई है.

सांसद बोले चल रहा बंदरबाट

सांसद चुन्नीलाल साहू ने निगरानी समिति की बैठक लेने मंगलवार को पत्रकारों से चर्चा कर कहा कि जीरो टोरलेन्स की बात करने वाली कांग्रेस सरकार में जमकर बंदरबाट चल रहा है. लाइनिग गड़बड़ी मामले में 2013 में भाजपा सरकार ने बड़ी कार्रवाई की थी. अब जांच तक न होना बंदरबाट की ओर इशारा करता है. रेत से लेकर खनिज मामलों में भी जमकर बंदरबाट चल रहा है. सांसद ने यह तक कह दिया कि यह सरकार कमाने के लिये बनी है.

बनना पड़ता है कोप का भाजन

भाजपा नेता प्रीतम सिन्हा बीते दो मगीने से नहर लाइनिंग के कार्य में गड़बड़ी को लेकर लगातार सचिव स्तर पर शिकायत कर रहे हैं. यहां तक राज्यपाल को भी पत्र भेज चुके हैं, लेकिन गड़बड़ी पर कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं किया जा रहा है. प्रीतम सिन्हा आरोप लगाते हैं कि पूरा काम ईई पीके आनन्द व ठेकेदार के साथ पार्टनरशिप में चल रहा है, इसलिए काम की निगरानी करने कोई भी मातहत नहीं आते हैं. ईई के बगैर अनुमति के साइट में आने वाले मातहतों को उनके कोप का भाजन बनना पड़ता है.

आरोप तो कोई भी लगा सकता है

मामले में ईई पीके आनन्द कहते हैं कि 2009 में स्वीकृत योजना का बचत कार्य स्वीकृत व तय मापदंड के मुताबिक हो रहा है. एसडीओ इंजीनियर व मेरी निगरानी में बेहतर काम हो रहा है. वहीं पार्टनरशिप के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए ईई आनन्द ने कहा कि ऐसा आरोप तो कोई भी लगा सकता है, आरोप निराधार है.