रायपुर. मित्र सप्तमी का त्योहार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है. मित्र सप्तमी पूजन मित्र सप्तमी व्रत भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है. इस पर्व में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है. मित्र सप्तमी व्रत में भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है.
इस दिन व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है और उन्हें जल से अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य भगवान का षोडशोपचार पूजन करते हैं. पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है. सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें. इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु की प्राप्ति होती है.
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इस दिन सूर्य की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए. पूजन और अर्घ्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य देखनी चाहिए. मित्र सप्तमी पर्व के दिन पूजा का सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के फल, दूध-केसर, कुमकुम बादाम इत्यादि को रखा जाता है. इस व्रत का बहुत महत्व रहा है. इसे करने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
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इस व्रत को करने से चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है. स्कन्दपुराण के अनुसार काशी स्थित मित्रावरुण नामक दो शिवलिंगों की पूजा करने से मित्रलोक एवं वरुणलोक की प्राप्ति होती है.
मित्रता को देखने के लिए कुंडली के सप्तम स्थान को देखा जाता है. अगर सप्तम स्थान दूषित हो तो मित्र सप्तमी की पूजा करना चाहिए इसके अलावा सप्तम स्थान के स्वामी शुक्र के मन्त्र का जाप करना, सफेद वस्तु का दान करना और हवन सामग्री का दान करना चाहिए.
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