कटिहार। जिलें की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है जहां भाजपा से जुड़े एक परिवार के सदस्य अलग राजनीतिक राह पर चल पड़े हैं। विधान परिषद के सदस्य और भाजपा के कद्दावर नेता अशोक अग्रवाल के बेटे सौरभ अग्रवाल ने भाजपा छोड़कर महागठबंधन के पक्ष में चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वह इस बार महागठबंधन की ओर से वीआईपी के सिंबल पर कटिहार विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरेंगे। यह राजनीतिक मोड़ खासकर तब चर्चा में आया जब परिवार के बाकी सदस्य भाजपा से जुड़े हुए हैं।
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दो बार जीता है
अशोक अग्रवाल ने विधान परिषद का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दो बार जीता है, लेकिन उनकी पहचान पूरी बिहार में खासकर सीमांचल क्षेत्र में भाजपा के प्रभावशाली नेता के रूप में है। उनकी पत्नी और कटिहार की महापौर उषा अग्रवाल भी भाजपा से जुड़ी हैं और उन्होंने भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर महापौर का पद हासिल किया था। यानी पति-पत्नी भाजपा से जुड़ी अपनी राजनीतिक पहचान बना चुके हैं और भाजपा के मजबूत समर्थक माने जाते हैं, लेकिन इस परिवार की राजनीतिक कहानी में नया मोड़ तब आया जब उनके पुत्र सौरभ अग्रवाल ने महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया। सौरभ ने अब तक अपने परिवार और भाजपा के प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाई है और “मेरा परिवार, मोदी परिवार” जैसे नारे देकर मोदी सरकार का समर्थन किया था। लेकिन अब उन्होंने अपने राजनीतिक रास्ते को बदलकर महागठबंधन के साथ जुड़ने का फैसला किया है।
परिवार में भी खुलकर समर्थन दिखा
सौरभ के इस फैसले के बाद उनके परिवार में भी खुलकर समर्थन दिखा है। उनकी मां और कटिहार की महापौर उषा अग्रवाल ने खुलेआम बेटे के फैसले का समर्थन किया और उनके लिए “विजयी भव” की कामना भी की। यह साफ संकेत है कि परिवार के भीतर सौरभ की राजनीतिक पसंद को सम्मान मिला है और वे उसकी राजनीतिक लड़ाई में पूरी तरह साथ हैं।
भाजपा के साथ ही बने रहेंगे
वहीं, इस बदलाव को लेकर अशोक अग्रवाल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि वे पार्टी के प्रति वफादार हैं और भाजपा के साथ ही बने रहेंगे। उन्होंने यह भी माना कि उनके परिवार में जो विरोधाभास सामने आया, उसके बारे में उन्हें पहले पता नहीं था। उन्होंने कहा कि भाजपा पार्टी के जो भी जिम्मेवार भूमिका या कार्यभार उनके लिए तय करेगी, वे उसे पूरा करेंगे। अशोक अग्रवाल की इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि वे पार्टी के प्रति अपने समर्थन में कट्टर हैं, लेकिन परिवार के सदस्य अलग राजनीतिक राह चुन सकते हैं। कटिहार की यह राजनीतिक कहानी बिहार की राजनीति में एक अनूठा उदाहरण पेश करती है जहां एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं और चुनाव लड़ रहे हैं। इससे यह भी जाहिर होता है कि आज के राजनीतिक परिदृश्य में व्यक्तिगत विचार और रणनीतियां परिवार की राजनीतिक विरासत से अलग हो सकती हैं। सौरभ अग्रवाल का महागठबंधन के साथ जुड़ना और भाजपा परिवार का हिस्सा रहना एक ऐसा नया अध्याय है जो बिहार चुनाव 2025 में राजनीतिक गतिशीलता को और भी दिलचस्प बनाएगा। इस तरह के राजनीतिक बदलाव मतदाताओं के मन में भी नई बहस और चर्चा का विषय बनेंगे, खासकर कटिहार जैसे संवेदनशील क्षेत्र में।
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