छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।।

चन्द्रशेखर साहू, पूर्व सांसद एवं पूर्व मंत्री. पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी एक-राष्ट्र नायक और विष्व नेता थे, जिन्होंने भारत के समाज जीवन एवं राष्ट्र जीवन में सर्वाधिक योगदान दिया.
जीवन परिचयः-
आपका जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर, मध्यप्रदेश में हुआ था. आपके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी था. एक भरे-पूरे परिवार के सदस्य अटल बिहारी वाजपेयी ने विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज, ग्वालियर और डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर में अपनी पढ़ाई पूरी की. वाजपेयी जी ने राजनीतिशास्त्र से एम.ए. तक की पढ़ाई की. आप 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में गिरफ्तार हुए थे और कुछ दिन जेल में रहे थे. वाजपेयी जी ने एक पत्रकार के रूप में अपना जीवन शुरू किया, 1947-50 के दौरान ‘‘राष्ट्र धर्म‘‘, 1948-50 के दौरान ‘‘पाज्चजन्य‘‘ (साप्ताहिक), 1949-50 के दौरान ‘‘स्वदेष‘‘ (दैनिक) तथा 1950-52 के दौरान ‘‘वीर अर्जुन‘‘ (दैनिक तथा साप्ताहिक) के संपादकों के पदों को सुशोभित किया.

1951 में वाजपेयी जी जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे तथा 1968-73 के दौरान आप इसके अध्यक्ष रहे. वाजपेयी जी 1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे. जनता पार्टी की सरकार में 1977-79 के अवधि के दौरान आपने विदेषमंत्री के पद को सुशोभित किया. इसके बाद वाजपेयी जी 1980 में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे तथा 1980-86 के बीच आप इसके अध्यक्ष पद पर आसीन रहे. आप 1980-84 तथा 1986-91 में भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल के नेता थे. लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य के रूप में आप 1957 से लेकर 2009 तक लगातार संसद सदस्य रहे. 1991-96, दसवीं लोकसभा में आप नेता प्रतिपक्ष रहे. ग्यारहवीं लोकसभा के गठन के तुरंत बाद आप 16 मई, 1996 से 28 मई, 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. जून 1996 से फरवरी 1998 तक ग्यारहवीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. 19 मार्च 1998 से लेकर 22 मई 2004 तक भारतीय गणतंत्र के प्रधानमंत्री रहे.

सन् 1984 को छोड़कर वाजपेयी जी पिछले 47 वर्षों के लंबे कालखण्ड में संसद के किसी-न-किसी सदन के सदस्य रहे. चार दशकों से भारतीय संसद में अपनी गौरव पूर्ण उपस्थिति से वाजपेयी जी ने देश और संसद की गरिमा की श्रीवृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

संसदीय जीवनः-
वाजपेयी जी 1966-67 के दौरान सरकारी आश्वासन संबंधि समिति के, 1969-70 और 1991-92 के दौरान लोकलेखा समिति तथा 1990-91 के दौरान याचिका- समिति के अध्यक्ष रहे. 1965 में पूर्वी अफ्रीका गए संसदीय सद्भावना मिशन के, 1983 में यूरोपीय संसद में संसदीय शिष्टमंडल के; कनाडा (1966), जांबिया (1980), आइल ऑफ मैन (1984) में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ में शिष्टमंडल के’ जापान (1974), श्रीलंका (1975), स्वीट्जरलैंड (1984) में आयोजित अंतर संसदीय यूनियन सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल के तथा 1988 से 1994 और 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारतीय शिष्टमंडल के आप सदस्य रहे हैं. अनेक अवसरों पर आप राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य रह चुके हैं. फरवरी 1994 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के विषेष आग्रह पर आपने जेनेवा में मानवाधिकारों के सम्मेलन में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया अपितु प्रतिपक्ष के नेता द्वारा सरकार का पक्ष प्रस्तुत किए जाने की यह घटना अपने आपमें वहां उपस्थित सभी राष्ट्र प्रमुखों के लिए आश्चर्य और भारत के लोकतंत्र के प्रति निष्ठा और विष्वास कर अवसर बनी.

1995 में संयुक्त राष्ट्र की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित विशेष सत्र में भी वाजपेयी जी ने देश के दल का नेतृत्व किया. विदेश मामलों की समिति के चेयरमैन के रूप में भी वाजपेयी जी ने 1997 में बहरीन, कुवैत और संयुक्त राष्ट्र अरब अमीरात की यात्रा की. वाजपेयी को ‘‘कैदी कविराज की कुंडलिया‘, ‘न्यू डाइमेंशंस ऑफ एशियन फॉरेन पॉलिसी‘ ‘मृत्यु या हत्या‘, ‘जनसंघ और मुसलमान‘ और ‘मेरी इक्यावन कविताएं‘ नामक पुस्तकें लिखने का श्रेय प्राप्त है. 1992 में प्रकाशित ‘संसद में तीन दशक‘ के तीन खंडों को समाहित करते हुए और उनमें सम्मिलित होने से रह गए और उसके बाद आपने सन् 57 से अब तक लोकसभा और राज्यसभा में जितने महत्वपूर्ण भाषण दिए हैं, वे सब ‘मेरी संसदीय यात्रा‘ के इन चार खंडों के प्रकाशन के साथ ही पुस्तक रूप में पाठकों तक आ चुके हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मंत्री मंडल के हुई बैठक में 24 दिसम्बर 2014 को अटल बिहारी वाजपेयी जी को भारत रत्न देने का महत्वपूर्ण घोषणा की गई और 2015 में प्रधानमंत्री जी के अध्यक्षता में हुई मंत्री मंडल की बैठक में भारत रत्न का अलंकरण प्रदान करने हेतु निर्णय लिया गया.

अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रा आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया. 1942 में आपको ब्रिटिश हुक्मरानों ने जेल भेजा. आपातकाल के पूरे दौर में 1975 से 77 तक आप जेल में रहे. राष्ट्र के प्रति समर्पित सेवाओं के लिए राष्ट्रपति ने 1992 में ‘‘पदम् विभूषण‘‘ से विभूषित किया. 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने फिलॉसफी में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की. 1994 में ‘‘लोकमान्य तिलक‘‘ पुरस्कार दिया गया. 1994 में ‘‘सर्वश्रेष्ठ सांसद‘‘ चुना गया और ‘‘गोविंद वल्लभ पंत‘‘ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 26 नवबंर, 1998 को सुलभ इंटरनेशनल फाउंडेशन ने वर्ष 97 के सबसे ईमानदार व्यक्ति के रूप में चुना. उपराष्ट्रपति कृष्णकांत ने इस पुरस्कार से सम्मानित किया.

1957-1962 दूसरी लोकसभा, बलरामपुर (उ.प्र.) का प्रतिनिधित्व.
1962-1967 राज्यसभा, उत्तर प्रदेष का प्रतिनिधित्व.
1967-1971 चौथी लोकसभा, बलरामपुर (उ.प्र.) का प्रतिनिधित्व.
1972-1977 पांचवी लोकसभा, ग्वालियर (म.प्र.) का प्रतिनिधित्व.
1977-1979 छठी लोकसभा, नई दिल्ली का प्रतिनिधित्व, जनता सरकार में भारत के
विदेश मंत्री.
1979-1984 सातवीं लोकसभा, नई दिल्ली का प्रतिनिधित्व.
1986-1991 राज्यसभा, मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व.
1991-1996 दसवीं लोकसभा, लखनऊ (उ.प्र.) का प्रतिनिधित्व, सदन में प्रतिपक्ष के नेता.
1996-1998 ग्यारहवीं लोकसभा, लखनऊ (उ.प्र.) का प्रतिनिधित्व, 16 से 28 मई, 1998
तक भारत के प्रधानमंत्री, तदनंतर फरवरी 1998 तक प्रतिपक्ष के नेता.
संप्रति मार्च 1998 से बारहवीं लोकसभा, लखनऊ (उ.प्र.) का प्रतिनिधित्व, भारत के प्रधानमंत्री.

‘‘हानि-लाभ के पलड़ों में
तुतला जीवन व्यापार हो गया,
मोल लगा बिकने वाले का,
बिना बिका बेकार हो गया,
मुझे हाट में छोड़ अकेला
एक-एक कर मीत चला
जीवन बीत चला।‘‘

ऐसे महामना को मेरा कोटिश: नमन्