रायपुर. राजनांदगांव की एक दंपत्ति के घर अब खुशियां ही खुशियां हैं, क्योंकि पूरे 128 दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उनकी बेटी अपने घर आ गई है. मासूम बच्ची चैरी के पिता सौरभ के मुताबिक उनकी पत्नी निकिता जब 5 माह की गर्भवती थी और उनके गर्भ में पल रही बेटी महज 20 सेंटीमीटर लम्बी और 350 ग्राम वजनी ही थी, तभी डॉक्टरों ने बताया कि उनकी पत्नी को इंफेक्शन हो गया है और बच्ची की जान खतरे में है.
दंपत्ति ने इलाज के लिए हैदराबाद का एक निजी अस्पताल रेनबो में इलाज करवाना तय किया और महिला की डिलवरी कराने के बाद बच्चे को इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा. बच्ची 105 दिनों तक वेंटिलेटर पर रही और अस्पताल से डिस्चार्ज के वक्त उसका वजन 1.980 किलोग्राम था. इसके पहले भी इंफेक्शन के चलते महिला का 4 बार गर्भपात कराया जा चुका था, यही कारण है कि इस बार दंपत्ति गर्भपात नहीं कराना चाह रहा था और मासूम बच्ची की जान बचाने परिवार ने पूरी ताकत झोंक दी.
अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक “प्रीमैच्यूर हुए बच्चों के मामलों में प्रसव के बाद शुरू के 3 से 4 दिन बेहद क्रिटिकल होते हैं क्यूंकि इस दौरान बच्चे बहुत कमजोर होते हैं. खासकर इस मामले में बच्ची को ऑक्सीजन और ब्लडप्रेशर की कमी से भी जूझना पड़ा था. बच्ची के छोटे आकर की वजह से उसके अन्दर श्वास नाली का डालना चुनौतीपूर्ण काम था और उसे प्रचुर श्वास देने के लिए वेंटीलेटर पर भी रखना पड़ा, पर अच्छी बात ये थी बच्ची के ब्रेन में ब्लीडिंग नहीं हो रही थी. पांचवे दिन चैरी के फेफड़ों में ब्लीडिंग शुरू हो गई जिससे उसे उच्च आवर्ती कंपन (हाई फ्रीक्वेंसी औसीलेशन) वेंटीलेटर पर रखना पड़ा. इसके अलावा जन्म के बाद चैरी को पीलिया, मल्टीपल ब्लड ट्रांस्फ्यूजन, भोजन सम्बंधित, फेफड़ों में इन्फेक्शन समेत अन्य कई बीमारियों से सामना भी करना पड़ा. लेकिन अब चैरी पूरी तरह स्वस्थ्य है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है.