सुप्रिया पांडे,रायपुर। आज मदर्स डे है. इस दिन बच्चे अपनी मां को खास फील कराने के लिए क्या कुछ नहीं करते है ? कुछ गाना गाते है, कुछ सोशल मीडिया में मां के साथ फोटो लगाकर उनके बारें में कुछ अलग लिखते है, जो पहले कभी नहीं लिखा हो. लेकिन आज कुछ ऐसे मां भी हैं, जिनकी बातें कोई नहीं करता है. क्योंकि वो बेबस, गरीब, और लाचार है. मजबूरी में मजदूरी कर रोजी-रोटी कमाकर अपने बच्चों का भरण-पोषण करती है. वो भी बाकी मां की तरह यही चाहती है कि उसके बच्चे को कोई तकलीफ ना हो, कोई भी आंच आने से पहले उस पर होकर गुजरे.
आज हम आपको उन मांओं के बारे में बताएंगे, जो कोरोना लॉकडाउन के दौरान पैदल चलने को मजबूर हैं. उनके सामने रोटी की संकट न होती, तो वो भी अपने घर में आपके और हमारी तरह चैन से दो वक्त की रोटी खा रहीं होती. गोद में दुधमुंही बच्ची और हजारों किमी का सफर उसी मां को पता होगा, जिसने हैदराबाद से पैदल चलकर रायपुर तक का सफर तय किया है. बच्ची गोद में सुकून से इसलिए सो रही, क्योंकि मां ने पैदल सफर में भी उस पर कोई आंच नहीं आने दी.
माँ सुनीता पाटिल ने इतनी चिलचिलाती धूप में कई किलोमीटर का सफर अपने दोनों बच्चों को गोद में लेकर ही पूरा कर लिया. वो बताती है कि हैदराबाद से पैदल चलकर रायपुर पहुंची है. इन्हें रास्ते में कोई मदद नहीं मिली. सुनीता के दो बच्चे है. वो भी अपनी माँ के साथ वापस मुंगेली जाना चाहती है.
शशि भास्कर बताती है कि हैदराबाद से पैदल चल कर आ रही है. उन्हें कोई मदद नहीं मिली. हैदराबाद से बसफल्ली राजीव गांधी नगर से लौटी है. खाने-पीने की उतनी व्यवस्था नहीं थी. अब छत्तीसगढ़ पहुंचे है तो यहां ट्रांसपोर्ट ट्रक के माध्यम से रवाना किया जाएगा. महिला लोरमी की रहने वाली है. परिस्थितियां चाहें जैसी भी हो हर तकलीफ का सामना खुद करती है, लेकिन अपने बच्चों पर कभी आंच नहीं आने देती है.
आप जो ये तस्वीरें देख रहे हैं वो रायपुर के टाटीबंध की है, जहां इनके जैसी और भी मां थी जिनकी यही कहानी है. अन्य राज्यों से पैदल या गाड़ी के माध्यम से पहुंची है. इनके लिए टाटीबंध में खाने की व्यवस्था की गई. साथ ही सभी को ट्रांसपोर्ट ट्रक के माध्यम से उनके गंतव्य स्थल रवाना किया जा रहा है.