पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबंद। देवभोग के आदिवासी गोड परिवार की बेटी की दास्तां आपके नजरिए को बदलने पर मजबूर कर देगी. उसकी जगह कोई और होता तो शायद बेहतर भविष्य की आस में मासूम को छोड़कर देता, लेकिन इसकी बात जुदा है. यही वजह है कि आज हम मदर्स डे पर उस मासूम मां की दास्तां बता रहे हैं जो दूसरे अबोध मासूम की जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है.
मासूम भुनेश्वरी (बदला नाम) को पता ही नहीं चला कि गांव का युवक उसके दिल में बस गया. युवक के शादीशुदा होने के बाद भी उसके शादी करने के वादे में उसने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया. लेकिन युवक का प्यार कितना सच्चा था, इसका अहसास उसे तब हुआ जब उसे अपने गर्भवती होने का अहसास हुआ. जांच कराई तो पता चला कि पेट में सात महीने का बच्चा है. परिवार से होते हुए गांव के पंचायत तक बात पहुंची, युवक से अपने वादे को निभाने को कहा गया, लेकिन वह साफ मुकर गया.
मामला पुलिस से होते हुए कोर्ट-कचहरी तक पहुंचा और युवक को जेल हो गई. इधर युवक जेल पहुंचा और उधर भुनेश्वरी ने बेटे को जन्म दिया. उसे कहने को सरकार से हर्जाने के तौर पर 1 लाख 20 हजार रुपए मिला, और रहने के लिए नारी निकेतन में जगह, लेकिन अनजाने माहौल और लोगों के बीच रहने की बजाए उसने अपने माता-पिता और सात भाई-बहनों के साथ रहना मंजूर किया. गरीब मां-बाप ने भी उसे निराश नहीं किया और भरे मन से ही सही उसे उसके बेटे के साथ अपना लिया.
बड़े परिवार में मुश्किल से होता है गुजारा
लेकिन इस बड़े परिवार में गुजारा बड़ी मुश्किल से होता है. भुनेश्वरी और उसके बेटे को मिलाकर 11 सदस्यीय परिवार में से केवल सात सदस्यों के ही नाम राशन कार्ड पर दर्ज हैं, इससे मिलने वाले 49 किलो चावल से गुजारा बड़ी मुश्किल से होता है. अलग मकान में नहीं रहने के कारण भुनेश्वरी का अलग से राशन कार्ड नहीं बन रहा है. मापदंड में खरा नहीं उतरने के कारण उसका फार्म रिजेक्ट हो जाता है. उसकी समस्या है कि अपने मासूम बेटे को लेकर मां-बाप से कैसे अलग रहे. ऐसे में परिवार पर बोझ न बने इसके लिए कुछ घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन मांजने का काम कर लेगी है, सूखी लकड़ी इकट्ठा कर बेच कर दो पैसे भी कमा लेती है.
मासूम बेटे से अलग रहकर नहीं करेगी ब्याह
बिन ब्याही मां बनने का दर्द क्या होता है भुनेश्वरी से बेहतर और कोई नहीं जान सकता. उसकी वजह से पूरे परिवार को सामाजिक कायदों के चलते ढाई वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा, गांव से बाहर रहने की नौबत तक आ गई. हालांकि, समय के साथ समाज के जागरूक लोगों ने सब कुछ ठीक कर लिया. साल भर से ओड़िशा से विवाह के प्रस्ताव भी आ रहे हैं, लेकिन सभी की शर्त होती है कि बच्चा मां से अलग रहेगा. लेकिन भुनेश्वरी का कहना है कि बच्चे के लिए जब शुरू से संघर्ष कर रही है तो आगे भी करेगी, उसे छोड़ कर अब घर बसाने की नहीं सोच सकती.