उज्जैन। बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन वैसे तो देश भर में प्रसिद्ध है, लेकिन इस समय उज्जैन की खूब चर्चा में है। दरअसल, 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां बने ‘महाकाल लोक’ का लोकार्पण करेंगे। पहले इसका नाम महाकाल कॉरिडोर था। लेकिन 27 सितंबर को ‘बाबा महाकाल की अध्यक्षता’ में हुई कैबिनेट बैठक में इसका नाम महाकाल लोक रखने का निर्णय लिया गया। महाकाल लोक की लागत 856 करोड़ रुपए है। आइए जानते हैं बाबा महाकाल की नगरी में कौन-कौन से धार्मिक स्थल प्रमुख हैं।

सबसे पहले जानते हैं बाबा महाकाल मंदिर के बारे में…

विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में एक है। जो मोक्षदायिनी मां क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। महाकालेश्वर दक्षिणमुखी है और इन्हें स्वयंभू भी कहां जाता है। यहां भगवान महाकाल के रूप में धरती फाड़कर प्रकट हुए हैं।

काल भैरव मंदिर

उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में अतिप्राचीन काल भैरव मंदिर भी है। काल भैरव को बाबा महाकाल का सेनापति माना जाता है। इसके साथ ही इन्हें शिव के भैरव स्वरूप में भी जाना जाता है। काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है। लेकिन आज तक ये पता नहीं चला कि शराब जाता कहा है। काल भैरव की उत्त्पत्ति शिव से ही मानी जाती है।

सांदीपनि आश्रम

उज्जैन में महर्षि संदीपनी आश्रम भी है। जो भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली है। महर्षि सांदीपनि एक महान तपस्वी थे जो 18 कलाओं में पारंगत विद्वान ब्राह्मण पुत्र थे। महर्षि सांदीपनि अपने मृत पुत्रों के वियोग में अवंतिकापुरी आए थे। भगवान श्रीकृष्ण ने महर्षि सांदीपनि से आश्रम में 11 वर्ष 7 दिन की उम्र में 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। स्लेट पर लिखे हुए अंक को मिटाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण जिस गोमती कुंड में जाते थे, वह कुंड आज भी यहां स्थापित है। अंको की बात होने के कारण यहां के क्षेत्र को अंकपात भी कहा जाता है।

श्मशान घाट (चक्रतीर्थ)

धार्मिक नगरी उज्जयिनी के श्मशान घाट को तीर्थ स्थल भी माना जाता है। इसके पीछे प्रमुख वजह विश्व की एक मात्र उत्तर प्रवाह मान नदी मोक्षदायिनी क्षिप्रा यहां है। इसके साथ ही श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली राजा महाकाल और विक्रमादित्य की नगरी शक्तिपीठ, 84 महादेव 9 और मंगलदेव की उत्त्पत्ति का स्थान है। चक्रतीर्थ उज्जैन का सबसे प्राचीन और प्रमुख शमशान घाट है। उज्जैन में चक्रतीर्थ श्मशान के अलावा गढ़कालिका, कालभैरव, विक्रांत भैरव तंत्र क्रियाओं के मुख्य स्थान माना जाता है। देश में पांच सबसे महत्वपूर्ण श्मशान माने जाते हैं उनमें से उज्जैन का चक्रतीर्थ श्मशान भी एक है। यहां तांत्रिक अपनी अघोरी साधनाओं को पूर्ण करते हैं।

सिंहासन बत्तीसी

अवंतिका नगरी के राजा सम्राट विक्रमादित्य को लेकर एक किवदंती है कि सम्राट विक्रमादित्य सिंहासन बत्तीसी पर बैठकर न्याय करते थे। महाकाल मंदिर के पास रुद्रसागर तालाब में सम्राट विक्रमादित्य का सिंहासन है जहां कभी राजा विक्रमादित्य सबके साथ न्याय करते थे। मां हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी। कुलदेवी मां हरसिद्धि न्याय में इनकी मदद करती थी। 32 पुतलियों की जो कहानी इनसे जुड़ी है वह 32 देवियां थी जिनका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में है। सिंहासन बत्तीसी सम्राट विक्रमादित्य की 32 कथाओं का संग्रह है जो 32 पुतलियां विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती थी।

हरसिद्धि मंदिर

उज्जैन के महाकाल वन में देवी हरसिद्धि का प्राचीन मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में एक मंदिर है। जहां माता सती की बाएं हाथ की कोहनी गिरी थी। यह सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि भी है। इसका प्रमाण मंदिर के पीछे एक कोने में कुछ ‘सिर’ सिंदूर चढ़े हुए रखे हैं। यह सिर सम्राट विक्रमादित्य के बताए जाते है। मान्यताओं के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य ने देवी हरसिद्धि को प्रसन्न करने के लिए 11 वर्षों में 11 बार अपने हाथों से अपने मस्तक की बलि दे दी थी। 11 बार ऐसा करने पर हर बार सिर वापस आ जाता था लेकिन 12 वीं बार सिर नहीं आया तो ऐसा समझा गया कि उनका शासन सम्पूर्ण हो गया।

चिंतामण गणेश मंदिर

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में भगवान गणेश का एक भी प्राचीन मंदिर है जिसे चिंतामन गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। गणेश जी के इस मंदिर में गर्भ गृह में तीन प्रतिमाएं स्थापित है जो चिंतामण, इच्छामण और सिद्धिविनायक के रूप में पूजी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीराम ने की थी। माता सीता द्वारा स्थापित षट विनायकों में से एक है। रामायण काल में वनवास के समय जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तभी सीता को प्यास लगी तो राम ने लक्ष्मण से पानी लाने के लिए कहा तब उन्होंने मना कर दिया। पहली बार लक्ष्मण द्वारा किसी कार्य को मना करने पर राम बड़े आश्चर्यचकित थे, उन्होंने अपने ध्यान से समझा कि यह सब यहां की दोष सहित धरती का कमाल है, तब उन्होंने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां गणपति मंदिर की स्थापना की, जिसके प्रभाव से बाद में लक्ष्मण ने यहां एक बावड़ी बनाई, जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते है। इस मंदिर में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं के लिए उल्टा स्वस्तिक बनाते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर उसे पुनः सीधा बनाया जाता है।

भूखी माता मंदिर

उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के किनारे भूखी माता का बहुत प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। मंदिर में दो देवियां विराजमान हैं। मान्यताओं के अनुसार यह दोनों बहनें है। इनमें से एक को भूखी माता और दूसरी को धूमावती माता के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को भुवनेश्वरी भूखी माता मंदिर भी कहा जाता है। भूखी माता के इस मंदिर में आज भी पशु बलि देने की प्रथा है। लेकिन मंदिर में आकर अपने हाथों से शाकाहारी भोजन बनाकर माता को भोग लगाने से देवी अधिक प्रसन्न होती है। मंदिर में दो दीपस्तंभ है। जिन पर नवरात्रों में दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं। नवरात्रि में अष्टमी को होने वाली पूजा के बाद माता को मदिरा का भोग लगाया जाता है।

मंगलनाथ मंदिर

उज्जैयनी पुराणों में मंगल की जननी भी कहलाई। यहां अमंगल को मंगल में बदलने वाले भगवान मंगलनाथ भी विराजित हैं। कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में भारी तबाही मचा दी, तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की तो भक्तों के संकट को दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ और शिवजी का पसीना बहने लगा। रुद्र के पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग है। यूं तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर है, लेकिन भगवान मंगलनाथ मंदिर में की गई मंगल (भात) की पूजा का जो महत्व है वो कहीं और नहीं है। मान्यता है कि यहां पूजा-अर्चना करने वाले हर जातक की कुंडली के दोषों का नाश हो जाता है।

भर्तृहरि गुफा

राजा भर्तृहरि प्राचीन उज्जैन के बड़े प्रतापी राजा थे। कालिकाजी के निकट उत्तर में खेत से एक फर्लांग की दूरी पर श्री भर्तृहरि की गुफा है। जो बड़ा शांत और रम्य स्थल है। यहां भर्तृहरि की समाधि है। परम तप: पूत महाराज भर्तृहरि सम्राट विक्रम के ज्येष्ठ भ्राता थे। ये संस्कृत-साहित्य के प्रकांड पंडित थे। उनका रचित ‘शतकत्रय ग्रंथ’ अपनी जोड़ का एक ही है। राग से विराग लेकर उन्होंने नाथ संप्रदाय की दीक्षा ले ली थी। पिंगला, पद्माक्षी आदि उनकी पत्नी थीं। पिंगला पर अधिक प्रेम था। उसकी अकाल मृत्यु से भर्तृहरि को अत्यंत वैराग्य उत्पन्न हो गया था। यह उसी महामहिम महामान की गुफा है। समाधि स्थल के पश्चात अंदर जाकर एक संकुचित द्वार से गुहा में प्रवेश करने का मार्ग है। यहां योग-साधन करने का स्थल धूनी है। इसी तरह अंदर ही अंदर चारों धाम जाने का एक मार्ग बतलाया जाता है, जो बंद है।

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