शिखिल ब्यौहार, भोपाल। चुनावी साल में शिवराज सरकार भले ही कर्मचारी वर्ग को साधने के लिए कई घोषणाएं कर रही है, लेकिन अब पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा गर्म होने लगा है। दरअसल, सात साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी प्रदेश के कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं मिल पा रही है। हर दो-चार महीने में सुप्रीम कोर्ट में पेशी की तारीख आगे बढ़ रही है। बीते सात साल में 30 से ज्यादा बार कोर्ट में मामले की सुनवाई टल चुकी है। पदोन्नति के इंतजार में सात साल में 50 हजार से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चेक हैं, लिहाजा अब कर्मचारियों ने अब प्रदेश में कलम बंद हड़ताल की तैयारी शुरू कर दी है। अगले महीने से प्रदेश में मामले को लेकर बड़े आंदोलन भी शुरू होंगे।

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कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों ने बताया कि यदि जल्द प्रमोशन के मामले को हल नहीं किया गया तो आंदोलन होगा। कर्मचारियों ने यह भी आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट का बहाना लेकर सरकार कर्मचारियों के हक को मार रही है। पदोन्नति के इंतजार में कई लोग रिटायर्ड भी हुए तो दूसरी ओर साढ़े चार लाख पात्र कर्मचारी प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं। इनमें सामान्य, पिछड़ावर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारी शामिल हैं।

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पदाधिकारियों ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर ने 30 अप्रैल  2016 को मध्यप्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002  खारिज किया था। कोर्ट ने 2002 के बाद पदोन्नति पाने वाले आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदावन करने का आदेश दिया था। इस कानून में अनुसूचित जाति और जनजाति कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण लाभ का प्रावधान है। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ 12 मई 2016  में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। खास बात यह है कि वर्ष 2011 में पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट जबलपुर में याचिका दायर करने वाले सभी अधिकारी बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

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मामले पर कांग्रेस ने आरोप लगाते हुए कहा कि सियासी लाभ के लिए सरकार ने हल नहीं निकाला और प्रमोशन में रिजर्वेशन का मामला कोर्ट में अटका हुआ है। उधर बीजेपी का दावा है कि सरकार कर्मचारी हितैषी है। मामला कोर्ट में विचाराधीन है। साथ ही मामले पर बनाए गए मंत्री समूह की सिफारिश के आधार पर काम किया जा रहा है।

बता दें कि पदोन्नति में आरक्षण का फॉर्मूला तय करने के लिए सरकार ने 13 सितंबर 2021 में मंत्री समूह का गठन किया था। इसके अलावा 9 दिसंबर 2020 में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। मामले को लेकर जाति वर्ग के आधार पर कर्मचारी गुटों में बट गए हैं।

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