(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
लो..दबदबे के आगे झुके आईपीएस, छोटे चैंबर में बड़े साहब
खाकी..एक ऐसा शब्द है जो अपने दबदबे का अहसास करा ही देती है। यदि बात पुलिस महकमे की हो तो रुतबे का रौब फिर सिर चढ़कर बोलता है। ऐसा ही कुछ हाल ही में देखने को मिला। दरअसल, घोटालों की जांच करने वाली एक खाकी से जुड़ी एजेंसी में पदस्थ डायरेक्ट आईएएस अफसरों ने मिलकर एक प्रमोटी को अपने दबदबे का अहसास कराया। बात प्रदेश की हर गतिविधि पर नजर रखने वाली विंग के दफ्तर के उस चैंबर की हो रही है, जहां पहले एक डायरेक्ट IPS साहब की बैठक थी। कुछ दिनों बाद आईजी साहब का तबादला हो गया। बदली के फरमान के बाद डीआईजी साहब ने आमद दर्ज कराने पूरी तैयारी कर रहे थे, लेकिन डीआईजी साहब तो प्रमोटी निकले। इसकी भनक भी आईपीएस अफसरों की लॉबी में आग की तरह फैली। रुतबे की आग थी तो भड़की भी बहुत। फिर क्या था दो डायरेक्ट आईपीएस अफसरों ने पहले ही बड़े-बड़े चैंबर पर कब्जा जमा लिया। अब प्रमोटी साहब छोटे से कमरे में कलम चलाते हैं। इस छोटे चैंबर के बड़े चर्चे मंत्रालय तक हैं।
कागज की कश्ती और बारिश का पानी, डूबेगी ही…
जगजीत सिंह साहब की एक गजल बड़ी मशहूर हुई। वो कागज की कश्ती और बारिश का पानी। लेकिन, बारिश में कागजी कश्ती को डूबना ही पड़ता है। खैर..यहां हम बात कर रहे हैं चुनावी बारिश की और उस अफसरों की बात कर रहे हैं जिन्होंने अपनी कश्ती में नेताओं को सवार होने नहीं दिया। लिहाजा नाराजगी की सूची में काली स्याही का डर अफसरों को सता रहा है। हुआ यूं कि बीजेपी संगठन ने जिला कोर कमेटी से चुनाव को लेकर सुझाव मंगाए थे। सुझाव तो कुछ खास नहीं पर कई अफसरों के खिलाफ शिकायत जरूर पूरे चिट्ठे के साथ दर्ज कराई गई थीं। इनमें तीन आईएएस, एक आईपीएस और दर्जन भर राज्य प्रशासनिक सेवा अफसरों के नाम शामिल हैं। चुनावी दौर में आखिर कौन जिला पदाधिकारियों को नाराज करें। सवाल तो जीत से जुड़ा हुआ है। लिहाजा बदली के लिए सूची भी तैयार कर ली गई है। चर्चा यह भी है कि अब साहिब लूप लाइन में भेजे जाएंगे। इधर, सरकार भी बड़े पशोपेश में है। अंदर की बात तो यह है कि ज्यादातर अफसर तो सरकार के साथ संगठन के खास हैं। हालात…एक तरफ खाई एक तरफ कुआं।
दोस्त हो या दुश्मन, रिश्ता भाई-भाई का और हिसाब…
रिश्ता भाई-भाई का हिसाब पाई-पाई का। होना भी ऐसा ही चाहिए। इसमें बुराई भी क्या है, लेकिन ऐसे ही कुछ मामलों को लेकर धुर विरोधियों का एक स्वर हो जाना तो सवालों को जन्म देगा ही। खासकर बात यदि रेत खनन की हो तो बीते दिनों विधानसभा मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के एक कद्दावर नेता के इलाके में रेत अवैध उत्खनन को लेकर सत्ताधारी दल के बीजेपी विधायक ने सदन के अंदर सवाल उठाए। विपक्ष के एक विधायक उसके सुर में सुर मिलाना चाहते थे, लेकिन विपक्षी दल के प्रभावशाली नेता ने उन्हें आखिरी समय पर हाथ पकड़कर रोक दिया। अब ऐसी बात भी कहा छिपती हैं। देखते ही देखते रेत खदान और पर्दे के पीछे दुश्मनी से दूर बेनकाब होती दोस्ती के चर्चे होने लगे। दोनों दलों के साथ मंत्रालय में मामला गर्म है। एक सवाल का उत्तर सभी खोज रहे हैं कि आखिर क्यों ये प्रभावशाली नेता अपने इलाके में रेत के अवैध उत्खनन का मुद्दा उठाने से रोक रहे थे ?
शाह के सामने मायूसी
मध्यप्रदेश बीजेपी में चुनावी जमावट का दौर जारी है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रदेश चुनाव प्रभारी बनाया तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन संयोजक की जिम्मेदारी दी। वैसे तोमर के चुनाव प्रबंधन में महत्वपूर्ण स्थान देने का संकेत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने भोपाल दौरे पर दिया था। बीजेपी प्रदेश कार्यालय में जब शाह विधानसभा चुनावों को लेकर नेताओं की जिम्मेदारी दे रहे थे, तब प्रदेश में चुनाव का चेहरा बनने की चाहत रखने वाले कई चेहरों को मायूस होना पड़ा। हालांकि अमित शाह ने प्रदेश में बदलाव की अटकलों को पर भी पूर्ण विराम लगा दिया है। इसके अलावा यह भी बता दिया कि चुनाव प्रबंधन से जुड़ी समितियों में अब चहेतों को नहीं बल्कि काम करने वाले चेहरों को तवज्जों मिलेगी।
मरहम लगाने वालो ने ही दर्द दिया
राजधानी भोपाल के कलेक्टर साहब इन दिनों अपनी आक्रामक शैली को लेकर सुर्खियों में हैं। कलेक्टर साहब के काम की मुरीद आम जनता ही नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी हो गई है। उन्होंने ट्वीट कर कलेक्टर साहब के भोपाल जिला अस्पताल में औचक निरीक्षण के बाद लिए एक्शन की तारीफ भी की। ट्वीट से सियासी चर्चाओं में आए कलेक्टर साहब स्टार भी बने। लेकिन जिला अस्पताल में हुई कार्यवाही के पीछे अंदर की कहानी कुछ और ही निकलकर आ रही है। दरअसल, जेपी अस्पताल में वर्चस्व की लड़ाई के चलते एक सीनियर अधिकारी ने ही जूनियर की शिकायत कर दी। कहने को तो सीनियर अधिकारी के पास जिला का प्रभार था। लेकिन जिला अस्पताल में ही उनकी बातों को अनसुना किया जाता। खेमे के एक और वरिष्ठ अफसर से अपने दुखड़ा रोया। महोदय ने बात सुन कलेक्टर साहब को औचक निरीक्षण की सलाह दे डाली। कलेक्टर साहब के इस दौरे का शिकार कई डॉक्टर हुए।
चर्चा जोरों पर है..
आप तो आप ही हैं और आपसे कोई कहे भी तो क्या कहें। यहां बात उस बड़ी बिल्डिंग की हो रही है जो घोटालेबाजों पर नकेल कसने के लिए जानी जाती है। इस बिल्डिंग से एक पत्र दिल्ली क्या पहुंचा, ठेकेदारों में हड़कंप मच गया। अब हड़कंप को नियंत्रित करने के लिए 13 करोड़ रुपये की जबरदस्त चर्चा जोरों पर है, लेकिन इस चर्चा के साथ अब मामला नियंत्रण में है। ठेकेदारों ने भी राहत की सांस ली।
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