शुभम नांदेकर/ शरद पाठक, पांढुर्णा (छिंदवाड़ा)। 2 दिन पहले पांढुर्णा क्षेत्र में आयोजित गोटमार मेला अपने पीछे कई घाव भी छोड़ गया है। क्षणिक उन्माद में इस खूनी खेल में शामिल हुए लोग अब होश में आने के बाद अपने उन्माद पर पछता रहे हैं, जिसने उनको परपंरा के नाम पर खूनी खेल में शामिल करा दिया था। आज भी बहुत से लोग पांढुर्णा के अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे हैं। ज्यादातर लोग तो ऐसे हैं जो अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर तो पहुंच गए हैं, लेकिन बिस्तर से उठने भी हालत में नहीं है। कुछ बदकिस्मत ऐसे भी हैं जिनको नागपुर या छिंदवाड़ा के बड़े-बड़े अस्पतालों में रेफर कर दिया गया है, जहां पर वह अपने परिजनों के साथ दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। एक व्यक्ति की आंखें चली जाने का भी खतरा है। फिलहाल अभी डॉक्टर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।

मेला स्थल के आसपास के खूनी पत्थर तो प्रशासन ने हटवा दिए हैं। वहां लगे हुए झंडे और तोरण भी अब निकाले जा चुके है। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होता जा रहा है, लेकिन इस मेले के जो निशान लोगों के शरीर पर पड़े थे, वह अभी भी ताजा है और मेले की भयावहता का एहसास करा रहे हैं। क्षेत्र के आसपास आपको पट्टियों से ढंके, दर्द से कराहते हुए ऐसे बहुत से घायल मिल जाएंगे। अपने घर के बाहर बैठे या गली में घूमते हुए जख्मी लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे इस क्षेत्र में अभी कोई युद्ध होकर खत्म हुआ हो।

लल्लूराम की टीम ने अस्पताल में भर्ती घायलों का जायजा लिया और उनसे उनका दर्द समझने का प्रयास किया। ज्यादातर घायल अब उन क्षणों को कोस रहे हैं जब वे क्षणिक उन्माद में आकर इस खेल में शामिल हो गए थे। सभी का मानना है कि नशे के कारण ही वह भ्रमित होकर खेल में शामिल हो गए थे और अब उन्हें इसका पछतावा भी है।

पांढुर्णा के सिविल अस्पताल में भर्ती श्यामू खरे ने दर्द से कराहते हुए बताया कि उनके पेट में एक बड़ा पत्थर आकर लगा था, उसके बाद लोगों ने उनको अस्पताल में भर्ती कराया। आज उन्हें कोई देखने भी नहीं आ रहा है। परिजन भी इलाज के लिए यहां-वहां भटक रहे हैं। उन्होंने दर्द से कराहते हुए कहा कि मैं शराब के नशे में गोट मार में शामिल हो गया था, लेकिन भविष्य में कभी ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगा। वे अब दूसरों को भी इस खतरनाक खेल से दूर रहने की सलाह देते हैं।

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पत्थरबाजी में अपने पैर में फ्रैक्चर करवा चुके महाराष्ट्र के काटोल निवासी रवि किशन लाल अपनी टूटी हुई टांग लेकर अस्पताल में यहां-वहां भटक रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह काटोल से यहां मेला देखने आए थे, परंतु नशे की अवस्था में खुद पथराव करने पहुंच गए। उन्हें दो पत्थर लगे हैं। एक पत्थर ने उनके पैर में फ्रैक्चर कर दिया है जिसके कारण वह अभी अपने घर वापस भी नहीं जा पा रहे हैं। यहां पर उनका कोई परिजन ना होने के कारण उनको खुद ही अपने इलाज और खाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। कोई सहारा देने वाला भी नहीं है।

लल्लूराम की टीम ने स्थानीय निवासी उमेश उरकडे से भी बातचीत की। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कुछ साल पहले गोटमार में उनका भी हाथ फ्रैक्चर हुआ था। उनका कहना है कि अगर सिर्फ पत्थर ही चलते हैं तो वह इतने खतरनाक नहीं होते, परंतु जब लोग गोफन चलाने लगते हैं। ऐसे स्थिति खतरनाक हो जाती है।

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अपनो को खोने वाले आशु सकरडे नहीं भुला पा रहे दर्द

वहीं गोट मार में कई साल पहले अपने परिजन को खो चुके आशु सकरडे का कहना है कि यह एक बहुत खतरनाक खेल है और मैं नहीं चाहता कि जैसा मेरे परिवार के साथ हुआ है, ऐसा किसी अन्य के साथ हो। प्रशासन को इस पर रोक लगाना चाहिए। आखिर कब तक परपंरा के नाम पर खूनी खेल चलता रहेगा।

घायलों का इलाज कर रहे डॉक्टर जितेश गोनांडे बताते हैं क गोटमार में बहुत बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे। आठ गंभीर जख्मी लोगों को भर्ती करना पड़ा, जिनमें से तीन को नागपुर रेफर कर दिया गया। बाकी लोगों का इलाज चल रहा है। बहुत से घायलों को अस्पताल से इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई।

हर साल की तरह इस साल भी गोटमार अपने पीछे तबाही के कई निशान छोड़ गया है। गोटमार का समर्थन करने वाले नेता भी अब इन घायलों की सुध लेने के लिए नहीं आ रहे हैं। प्रशासन ने भी घायलों को अस्पताल में भर्ती करा कर मुक्ति पा ली है। सबसे ज्यादा तकलीफ उन लोगों को है, जिनके परिजन नागपुर और छिंदवाड़ा में इलाज करा रहे हैं, उन्हें देखने वाला भी कोई नहीं है और किसी की सहानुभूति भी उनके साथ नहीं है, क्योंकि आम आदमी का मानना है कि पागलपन के शिकार इन लोगों को कुछ सबक भी मिलना चाहिए।़

जानिए इस परंपरा के पीछे की अधूरी प्रेम कहानी

दरअसल, शनिवार को छिंदवाड़ा के पांढुर्णा में परंपरा के नाम पर फिर खूनी खेल खेला गया था। गोटमार मेले में हुई पत्थरबाजी में इस बार करीब 200 लोग घायल हुए थे। कुछ लोगों को हालत गंभीर होने पर नागपुर रेफर किया गया है। पत्थरबाजी के दौरान पुलिस और प्रशासन की टीम भी मौजूद थी, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी वो बेबस नजर आए।

एक प्रचलित किवदंती के अनुसार पांढुर्णा के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम संबंध थे। प्रेमी युवक ने सावरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्णा लाना चाहा, पर दोनों के जाम नदी के बीच पहुंचते ही सावरगांव में खबर फैल गई। प्रेमी युगल को रोकने सावरगांव के लोगों ने पत्थर बरसाए, वहीं जवाब में पांढुर्णा के लोगों ने भी पत्थर फेंके। इस पत्थरबाजी से नदी में ही प्रेमीयुगल की मौत हो गई और तब से गोटमार मेले की परंपरा चली आ रही है।

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