रवि रायकवार, दतिया। समाज की रूढ़ीवादी सोच बेटों को कुल का दीपक कहती है, पिता की मौत के बाद बेटे से ही मुखाग्नि दिलाई जाती है. पर ये बातें अब बीते जमाने की बात हो गई हैं. वक्त के साथ रूढ़ीवादी सोच भी बदल रही है. मध्यप्रदेश के दतिया में एक बेटी ने पिता को मुखाग्नि देकर बेटे का धर्म निभाया. साथ ही अंतिम संस्कार की हर रस्म भी निभाई.

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दरअसल, दतिया की बुंदेला कॉलोनी निवासी राजेंद्र शाक्य की अचानक मृत्यु हो गई. मृतक का कोई पुत्र नहीं है. इस स्थिति में इकलौती संतान पुत्री दिव्या शाक्य आगे आई और रूढ़ीवादी परंपराओं के बंधन को तोड़तते हुए अपने पिता का अंतिम संस्कार किया. दिव्या ने हर फर्ज को पूरा किया और समाज के लिए एक मिसाल पेश की.

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वहीं रिश्तेदार और गांव वालों का कहना है कि राजेंद्र शाक्य ने अपनी बेटी को बेटे की तरह पाला. उसका कोई बेटा नहीं है. पिता ने कभी किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया. आज बेटी ने भी बेटा का फर्ज निभाकर एक संदेश दिया है कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं है.

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