रवि रायकवार, दतिया। ग्रामीण क्षेत्र में अंधविश्वास की जड़े अब भी काफी मज़बूत हैं, लोग गंभीर बीमार का इलाज अस्पताल में करवाने के बजाय किसी ओझा या जड़ी बूटी के नाम पर इलाज करने वाले के पास भागते हैं। दतिया में इसी अंधविश्वास के चलते एक मासूम की जान चली गई l  5 साल की बच्ची को कुत्ते ने काटा, मजदूर पिता इलाज करवाने के बजाय एक गांव  में ओझा के पास ले गया, ओझा ने दवा दी, कुछ समय बाद बच्ची की हालत बिगड़ी तो ग्वालियर ले गए, वहां भी डॉक्टर ने ढंग से नहीं देखा और बच्ची की मौत हो गई l

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कहने को तो हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीण अब भी 16वीं सदी में जी रहे हैं। ग्रामों में अंधविश्वास की जड़े अब भी काफी गहराई तक बैठी हैं। इसका जीवंत उदाहरण गोविन्दपुर ग्राम में देखने को मिला l जहां 5 साल की बच्ची नयना केवट को कुत्ते ने काट लिया बच्ची का मजदूर पिता दो दिन बाद घर पहुंचा और इलाज करवाने अस्पताल में जाने के बजाय यूपी एक गाँव में ओझा के पास ले गया।  ओझा ने दवा देकर दावा किया कि बच्ची जल्दी ही ठीक हो जाएगी तो बच्ची का पिता करन केवट बच्ची को घर छोड़ कर मजदूरी करने चला गया l

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 कुछ समय बाद बच्ची की हालत बिगड़ी तो ग्वालियर जया रोग ले गए, वहाँ भी डॉक्टर ने बच्ची को देखा नहीं नर्स को देखने को बोला लेकिन नर्स ने भी ढंग से नहीं देखा और बच्ची की मौत हो गई। वहीं बिना बच्ची का पोस्टमार्टम करवाए परिजनों को शव ले जाने को कह दिया l जबकि शासकीय अस्पताल में मौत होने पर पोस्टमार्टम का नियम है l

बच्ची के पिता के अंधविश्वास और अस्पतालों में व्याप्त लापरवाही के चलते एक मासूम को अपनी जान गवानी पड़ी। अगर बच्ची को समय पर रेबीज  का इंजेक्शन  लग जाता या ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में उचित इलाज मिल जाता तो मासूम शायद आज जिंदा होती l

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