रेणु अग्रवाल, धार। धार जिले की पर्यटन नगरी मांडू की खास पहचान खुरासानी इमली के पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने के लिए हैदराबाद के बॉटनिकल गार्डन ले जाने पर ग्रामीणों ने हंगामा कर दिया और मामले की कलेक्टर से शिकायत की। जिसके बाद कलेक्टर ने खुरासानी इमली के पेड़ों के ट्रांसपोर्टेशन और कटिंग पर रोक लगा दी है।

ग्रामीणों का आरोप है कि बॉटनिकल गार्डन में प्रत्यारोपण के नाम पर इन पेड़ों को उजाड़ा जा रहा है। ट्रांसप्लांट के नाम पर कई पेड़ों को उखाड़ा गया है। हालांकि बताया जा रहा है कि बॉटनिकल गार्डन संचालक के पास इसकी राजस्व विभाग की अनुमति थी।

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ग्रामीणों की शिकायत पर कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने तुरंत इन पेड़ों को हैदराबाद जाने से रोक दिया है। वहीं कटिंग पर भी तत्काल रोक लगा दी है। कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने कहा कि खुरासानी इमली के पेड़ों के ट्रांसपोर्टेशन और उनकी कटिंग पर तत्काल रोक लगा दी है। वहीं वन विभाग के अधिकारी जीडी वरवड़े ने कहा कि राजस्व विभाग अनुमति देता है हम तो केवल टीपी जारी करते हैं, जितने पेड़ों की डीपी जारी की गई थी, उतने ही पेड़ ले जाए जा रहे हैं।

बता दें कि हैदराबाद के रामदेव राव अपने नगर के 350 एकड़ रकबे में एक बॉटनिकल गार्डन तैयार कर रहे हैं। वह इसमें करीब 400 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं। इस गार्डन का नाम उन्होंने ग्रीन साम्राज्य यानी ग्रीन किंगडम रखा है। इसमें मांडू की खुरासानी इमली को भी शामिल किया गया। रामदेव राय चाहते हैं कि उनके गार्डन में खुरासानी के बड़े वृक्ष सीधे प्रत्यारोपित हों, ताकि इनके बड़े होकर फल देने के इंतजार से बचा जा सके। यह प्रत्यारोपण स्पेन की प्रणाली से किया जाना है। इसके लिए मांडू के 11 वृक्षों का चयन किया गया। लेकिन बताया जाता है कि अनुमति की आड़ में मांडू और आसपास के ग्राम सूलीबयड़ी, मेहंदीखेड़ी और पन्नाला में खुरासानी इमली के कई पेड़ धराशायी कर दिए गए। जिससे स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश है।

मांडू की पहचान है खुरासानी इमली

खुरासानी इमली जिसे बाओबाब भी कहते हैं। यह एक दुर्लभ प्रजाति का पेड़ है। यह पेड़ मांडू में बहुतायात से पाया जाता है। बताया जाता है कि इस पेड़ को अफ्रीका से लाया गया था। पेड़ के फल का उपयोग डिहाइड्रेशन से बचने के लिए उपयोग किया जाता है। मुगल सल्तनत के सुल्तानों ने 15 वीं शताब्दी में यह पेड़ मांडू पहुंचाया था और मांडू में इन फलों का उपयोग करके कई पेड़ तैयार किए गए थे। आज भी मांडू में 10 से 15 मीटर परिधि वाले तने के रूप में कई बड़े पेड़ों को देखा जा सकता है। इनकी उम्र 700 से 800 वर्ष तक आंकी गई है।

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