रेणु अग्रवाल, धार। मध्य प्रदेश के धार जिले के आदिवासी अंचलों में होलिका दहन के दूसरे दिन गल बाबा का मेला लगता है। इस दिन लोग रंग न खेलकर इस मेले में पहुंचते है। जहां पर मन्नत धारी गल बाबा की पूजा कर गल घूमते हैं। मेले में ग्रामीण आदिवासी दूर-दूर से आते हैं यह मन्नत धारी होते हैं ।

मन्नत अनुसार, 1 से 5 साल तक गल घूमा जाता है। मन्नत धारी अपने पूरे परिवार के साथ गल बाबा के मेले में पहुंचते हैं और मन्नत उतारते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। जहां मन्नतधारी विशेष तरह के ड्रेस कोड में पहुंचे हैं। मान्यता है कि बच्चा बीमार होने पर ठीक हो जाता है, बच्चा नहीं होने पर हो जाता है। मन्नत पूरी होने पर गल घूमना होता है। यहां एक ऊंचा टावर है, जिसकी ऊंचाई 50  फीट ऊंची होती है। इस टॉवर पर एक व्यक्ति बैठा होता है। वहीं एक आड़ा बांस बंधा होता है, जिस पर मन्नत धारी व्यक्ति को कपड़े से बांध दिया जाता है।

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फिर नीचे से एक व्यक्ति रस्सी से उस बांस को गोल गोल घुमाता है। इस तरह वह व्यक्ति ऊंचाई पर घूमता है। वह एक निश्चित ड्रेस कोड पहनकर मन्नत धारी मेले में एक निश्चित लाल कलर का कुर्ता और पीली पगड़ी पहन कर एक ड्रेस कोड में आते हैं। मन्नत धारी 1 से लेकर 5 साल या पूरे जीवन तक गल पर घूमता है। मन्नत धारी एक से लगाकर पूरे जीवन या 5 साल तक गल पर घूमता है। लोगों की मान्यता है कि गल बाबा की कृपा से वह जो मन्नत लेते हैं वह पूरी हो जाती है। अक्सर मन्नत बच्चे होने की, बीमारी से ठीक होने की ली जाती है। आदिवासी ग्रामीण अंचलों में इन मेलों में आने वाले मन्नत धारियों की भारी भीड़ देखी जा सकती है।

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