शब्बीर अहमद,भोपाल। मध्यप्रदेश नगरीय निकाय में पार्षदों के टिकट बंटवारे के बाद शहर-शहर हंगामा और प्रदर्शन की तस्वीरें देखने को मिल रही है। बीजेपी कांग्रेस में विद्रोह की ये तस्वीरें आम हैं। ऐसा नहीं है कि ये खबरें सिर्फ भोपाल, देवास, ग्वालियर से आ रही हैं। पूरे प्रदेश में टिकट कटने से नाराज़ दावेदारों ने बवाल कर रखा है। अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

मानसून के मौसम में इस्तीफों की झड़ी लग गई है। पार्टी कार्यालय, सांसदों, विधायकों के बंगलों पर नारेबाजी हो रही है। टिकट की सिफारिश करने वाले नेता दावेदारों से मुंह छिपाए फिर रहे हैं। दोनों ही दलों ने आखिरी वक्त पर टिकट डिक्लेयर किए हैं ताकि दावेदारों की बगावत का नुकसान कम से कम हो सके। हालांकि दावेदारों ने हेलिकॉप्टर लैंडिंग की आशंका जाहिर करते हुए पहले ही नामांकन दाखिल कर दिए थे, लेकिन अब बीजेपी कांग्रेस की मुसीबत बढ़ चुकी है। पहले वफादार कार्यकर्ताओं की बगावत फिर पब्लिक की नाराजगी, लिहाजा अपील के सिवाए नेता जी के पास दूसरा कोई चारा नहीं बचा है।

दावेदारों के बागी तेवर से दोनों दल सहम चुके हैं। बीजेपी के सामने अपने किले को बचाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। पिछली बार नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था, इसलिए बीजेपी के सामने 16 नगर निगम बचाए रखने की चुनौती है। वहीं कांग्रेस इस दफा खाता खोलने की उम्मीद से चुनावी मैदान में है।

दरअसल मध्यप्रदेश में साल 2015 में नगरीय निकाय चुनाव हुए थे।तब बीजेपी ने मध्यप्रदेश के 16 के 16 नगर निगम जीते थे।कांग्रेस शून्य पर सिमट गई थी.उस वक्त बीजेपी के 511 पार्षद जीते थे और कांग्रेस निर्दलीय मिलाकर 363 पार्षदों की जीत हुई थी. प्रदेश की 98 नगर पालिकाओं में 53 अध्यक्ष बीजेपी के बने थे, कांग्रेस के 39.नगर पालिकाओं में 1362 पार्षद बीजेपी के जीते, कांग्रेस-निर्दलीय मिलकर 1332 पार्षदों की जीत हुई थी.अब कांग्रेस विधानसभा चुनाव के पहले शहरों की सरकार बनाकर 2023 के विधानसभा चुनावों की जमीन मजबूत करने की कोशिश में है,

जबकि बीजेपी निकाय चुनाव में जीत हासिल कर अपने कार्यकर्ताओं को हौसला और हाई करने की तैयारी में है। नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए अब दोनों पार्टियों के दिग्गज नेता सक्रिय हो गए हैं। दोनों राजनीतिक दलों ने अपने प्रभावशाली नेताओं को रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने की जिम्मेदारी सौपी है, लेकिन दिग्गज टिकट के दावेदारों का गुस्सा देखकर ना उम्मीद भी हो रहे हैं। इन सबके बीच ये तय हो गया है कि शहर और गांव की सरकार जो बनाएगा वो 2023 में सत्ता की गद्दी के सबसे करीब पहुंच जाएगा।

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus