कर्ण मिश्रा, ग्वालियर. माना मेरे हाथों मे भविष्य बताने वाली लकीरें नहीं, लेकिन मैंने अपने हुनर से अपना भविष्य सवांरा है. जी हां…अपनी कमजोरी को ताकत बनाकर ना केवल अपने जीवन को समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़ने बल्कि अपने हुनर से दूसरो के लिये प्रेरणा स्त्रोत बनने वाले बहुत कम होते हैं, लेकिन ग्वालियर की बेटी खुशी बराधिया नें यह करके दिखाया है.
जन्म से हाथ-पैर ना होने के बावजूद ग्वालियर की रहने वाली खुशी जब कोरे कागज पर मुंह में ब्रश दबाकर रंग भरना शुरू करती हैं तो देखने वाले दंग रह जाते हैं. खुद के हाथ पैर ना होने की वजह से आने जाने के लिए खुशी को दूसरों के कंधे यानी सहारे की जरूरत पड़ती है. इसके बावजूद खुशी के हौसले काफी बुलंद हैं.
पेंटिंग-स्केचिंग में हासिल की महारत
चित्रकारी को हाथों का हुनर कहा जाता है, लेकिन जन्म से हाथ-पैर ना होने के बावजूद मध्यप्रदेश के ग्वालियर में रहने वाली 16 वर्षीय खुशी बराधिया ने बचपन से ही अपनी इस अपंगता को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. बल्कि दोगुनी मेहनत से अपने पेंटिंग के हुनर को निखारा. खुशी ने ना केवल पेंटिंग-स्केचिंग के अपने हुनर में महारत हासिल की, बल्कि अपने इस हुनर से वह अपने जैसे अन्य लोगों के लिये प्रेरणा स्त्रोत बन गई हैं.
कलेक्टर बनना चाहती हैं खुशी
खुशी ने अपने हौसले और हुनर की बदौलत लाचारी को काफी पीछे छोड़ दिया है. खुशी मानती हैं कि कोई भी दिव्यांगता हाथ पैरो से नहीं बल्कि मन से होती है औऱ यदि मन मे दिव्यांगता नहीं है तो फिर हर काम संभव है. खुशी अपनी पेंटिंग और स्केचिंग के जरिये सबसे ज्यादा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के ड्राइंग बनाती हैं. खुशी बड़ी होकर एक आर्टिस्ट और कलेक्टर बनना चाहती हैं. खुशी का एक और सपना है वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनका स्केच गिफ्ट चाहती हैं. इसके पीछे खुशी का कहना है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बेटी और महिलाओं के लिए बहुत सकारात्मक और अच्छे कदम उठाए हैं.
खुशी के हुनर को मां कर रही सपोर्ट
खुशी के घर में उसके अलावा उसकी एक छोटी बहन है. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बाबजूद खुशी के इस हुनर को उसकी मां आगे बढ़ाने में हर संभव मदद कर रही हैं. वह भी मानती हैं कि उन्हें कभी लगा ही नहीं कि उनकी बेटी दिव्यांग है. खुशी के हुनर और हौसले को वह गर्व की बात मानती हैं. खुशी की मां आरती का यह भी कहना है कि लोग सामान्य बेटी जब घर में आती है तो उसे बोझ समझते हैं लेकिन उनकी बेटी आज देश की सभी बेटी और महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी है.
हुनर से अपाहिजता को बौना साबित किया
खुशी ने अपने हुनर और जुनून के आगे अपनी अपाहिजता को बौना साबित किया है, बस जरुरत है तो समाज व शासन प्रशासन द्वारा ऐसे दिव्यांग हुनरमंदों को आगे बढाने और मुख्यधारा से जोडने की. ताकि इनके सपनों को भी वह मुकाम मिल सके जहां वह खुद के जीवन के उद्देश्यों को पूरा कर अन्य लोगों के लिये प्रेरणा स्त्रोत बन सकें.
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