कुमार इंदर, जबलपुर। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासियों में से जबलपुर का एक परिवार सरकारी सिस्टम और गरीबी से इस तरह हलकान और परेशान है कि उसने अपनी बदहाली से निजात पाने के लिए नसबंदी का रास्ता अख्तियार किया, लेकिन बदनसीबी यह है कि उसे नसबंदी की इजाजत भी नहीं मिल रही है। जी हां पिछले कई साल से जबलपुर कलेक्टर ऑफिस के चक्कर काट रही आदिवासी महिला की बस इतनी सी मांग है कि साहब हमें नसबंदी की इजाजत दे दो।
आर्थिक तंगी और बदहाली की मार झेल रहे इस परिवार के सिर पर न तो छत है न खाने का ठिकाना न रोजगार का कोई साधन है। लिहाजा अपने बढ़ते परिवार को कंट्रोल करने और बदहाली पर काबू पाने के लिए परिवार ने नसबंदी का रास्ता निकाला, लेकिन इस पर भी लालफीताशाही आड़े आ रही है।
डॉक्टर मांग रहे कलेक्टर की परमिशन
परिवार को अधिकारियों ने इस बात का हवाला दिया कि आपका परिवार विलुप्त हो रही बैगा जनजाति से हैं, जिनकी नसबंदी नहीं हो सकती। इसके लिए कलेक्टर की परमिशन लगेगी। इसके बाद से ही 3 साल से नसबंदी कराने को लेकर परिवार सीएमएचओ कार्यालय से लेकर कलेक्ट्रेट कार्यालय के चक्कर काट-काट कर थक चुका है।
CM से लगाई गुहार
अब परिवार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव से गुहार लगाई है। परिवार का कहना है कि सीएम साहब हमारी नसबंदी करा दीजिए या मेरे बच्चों की जिम्मेदारी आप ही ले लीजिए। परिवार का कहना है कि इतनी बढ़ती महंगाई के चलते वह अपने बच्चों का पालन पोषण नहीं कर पा रहे है। वहीं इस मामले में CMHO का कहना है कि कलेक्टर साहब की परमिशन मिलती है तो परिवार के परीक्षण के बाद की नसबंदी की जा सकती है।
नसबंदी करा दो या घर का खर्च दो
जबलपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर बरेला के खैरी गांव में रहने वाला बैगा परिवार सरकारी सिस्टम के आगे घुटने टेक चुका है, लेकिन सिस्टम के अधिकारी है कि उन पर तरस खाने को तैयार नहीं है। परिवार में एक बच्चा दो साल का हैं, जबकि एक लड़की 6 साल की है। दोनों आंगनबाड़ी में पढ़ाई करते हैं। उनका कहना है कि हम खुद का गुजर बसर नहीं कर पा रहे हैं, अब ऐसे में दो बच्चे होने के बाद हमारी हालत और भी खराब हो गई है। यही वजह है कि अब अपने परिवार की संख्या नहीं बढ़ाना चाहते।
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