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निलेश भानपुरिया, झाबुआ। भले ही विज्ञान कितना भी तरक्की कर ले पर झाबुआ के लोग आज भी मौसम का मिजाज समझने के लिए पुरानी परंपराओं का सहारा लेते हैं। इसे परंपरा कहे या अंधविश्वास पर सदियों से चली आ रही भैंसे की बलि देने की परंपरा से यहां के लोग पूरे साल में होने वाली बारिश का अंदाजा लगाते हैं। हर साल झाबुआ के चुई गांव में दीपावली उत्सव के एक दिन पूर्व इस परंपरा को निभाया जाता है, जिसमें ऊंची पहाड़ी पर स्थित कुल देवता को भैंसे की बलि दी जाती है, जिसके बाद भैसे का धड़ पहाड़ी से लुढ़कते हुए जितना नीचे पहुंचता है उसी अनुपात में बारिश की संभावना भी जताई जाती है।
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झाबुआ जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर चुई गांव में हजारों की तादाद में आदिवासी समाज के लोग जमा होकर इस परंपरा को निभाते हैं। यहां वाग डूंगर की 300 फिट ऊची पहाड़ी है, जहां आदिवासी के लोक देवता वगेला कुंवर देव का स्थान है, जो हजारों लोगों की आस्था का प्रतीक है। यहां हर साल गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के हजारों श्रद्धालु इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए पहुंचते हैं।
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इस परम्परा को निभाने के दौरान पुजारी कीर्तन करते हैं। देवता का आह्वान किया जाता है। इस बीच दर्शन करने, मन्नत मांगने वाले लोगों का जमावड़ा भी होता है। पूजा के बाद नवजात भैसे की बलि दी जाती है। भैसे का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है और धड़ को पहाड़ी के नीचे की ओर लुढ़काया जाता है और अगर कहीं बीच में यह धड़ रुक जाता है तो बारिश कम होगी और अगर रुक-रुककर धड़ लुढ़कता है तो इससे रुक-रुककर बारिश की संभावना जताई जाती है। लेकिन पेड़ की इस बाधा को पार कर इस बार धड़ पहाड़ी से तेजी से नीचे की ओर लुढ़का। लोगों का मानना है कि इस साल बारिश अच्छी होगी।
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इस परंपरा का हिस्सा बनने के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। लोगों का मान्यता भी है कि हर साल भविष्यवाणी सच साबित होती है। इसे आस्था कहे या अंधविश्वास यहां हजारों लोग पहुंचते हैं। मेले जैसा माहौल रहता है। पुलिस भी मौजूद रहती है, ताकि कानून व्यवस्था बनी रहे।
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