रायपुर। सांसद ज्योत्सना महंत ने वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे को पत्र लिखा है. सांसद ने परसा एवं केते एक्सटेंशन कोयला खदान के लिए जारी तमाम अनुमतियों को निरस्त करते हुए कोल ब्लॉक अलॉटी कंम्पनी को अन्यत्र कोल ब्लॉक दिए जाने की बात कही है.

सांसद महंत ने वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री को लिखे पत्र में बताया कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र देश के कछ चुनिंदा जैव विविधता परिपूर्ण क्षेत्रों में से एक है. यह वन क्षेत्र, पेंच राष्ट्रीय उद्यान से शुरू होकर कान्हा, अचानकमार होता हुआ आगे पलामू के जंगलों तक विस्तृत वन कॉरीडोर का अहम हिस्सा है. 700 किमी लंबा यह कॉरीडोर हसदेव अरण्य में कोयला खनन करने से दो भागों में विभक्त हो जाएगा. देश में लगभग 900 कोल ब्लॉक उपलब्ध हैं, जिसमें से 700 के लगभग घने जंगलों के बाहर हैं. यूपीए की सरकार ने 2010 में घने जंगल क्षेत्र को नोगो एरिया घोषित किया था. परन्तु वर्तमान में इसकी उपेक्षा करके इन क्षेत्रों में कोयला खनन की अनुमति दी जाए.

फर्जी है ग्राम सभा का प्रस्ताव

पत्र में उन्होंने लिखा कि हाल ही में सरगुजा जिले के परसा कोल ब्लॉक को खनन अनुमति दी गई है, जबकि क्षेत्र के आदिवासी लगातार इस बात पर आरोप लगा रहे हैं कि वन अनुमति प्रक्रिया में प्रस्तुत किया गया ग्राम सभा प्रस्ताव फर्जी है. वास्तव में ग्राम सभाएं इस परियोजना के विरोध में हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में वन अधिकारों का अन्तिम निर्धारण नहीं हुआ है, जिसके कारण वनभूमि डायवरर्सन की स्टेज टू अनुमति नहीं दी जा सकती.

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डब्ल्यूआईआई ने कही है यह बात

सांसद महंत ने बताया कि परसा और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक घना जंगल क्षेत्र होने के साथ-साथ गेज और चरनोई नदी का जलग्रहण क्षेत्र है, जो कि दोनों ही नदियां हसदेव नदी की सहायक नदियां हैं. हाल ही में प्रस्तुत की गई. आईसीएफआरई रिपोर्ट और डब्ल्यूआईआई रिपोर्ट में इस क्षेत्र में कोयला खनन होने से अपूर्णीय नुकसान बताया है, और डब्ल्यूआईआई ने विशेष रूप से इस क्षेत्र में कोयला खनन होने से मानव हाथी द्वंद्व में भारी वृद्धि की आशंका बताई है. डब्ल्यूआईआई के अनुसार परसा और केते एक्सटेंशन कोयला खदान को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.