इमरान खान,खंडवा। नवजात शिशु को फेंकने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं. ऐसे में नवजात शिशुओं के देखभाल और परवरिश को लेकर मन में काफी सवाल उत्पन्न होते है. आज हम आपको फेंके गए नवजात शिशुओं के देखभाल और उनके परवरिश के बारे बताने वाले हैं. मध्यप्रदेश के खंडवा जिला अस्पताल (Khandwa District Hospital) के बी-ब्लाॅक में नवजात शिशुओं के लिए एसएनसीयू यूनिट (SNCU Unit) तैयार किया गया है. जहां नवजात बच्चों का देखभाल और इलाज किया जाता है. लेडी बटलर हॉस्पिटल के लेबर रूम और ऑपरेशन थिएटर में डिलेवरी के बाद जांच के लिए बच्चों को परिजन लेकर आते है. जिनका बखूबी इलाज भी होता है. यूनिट में स्टाफ नर्स की रुटीन ड्यूटी का हिस्सा है. लेकिन इससे हटकर भी यूनिट के डॉक्टर्स और स्टाफ नर्स नवजात शिशुओं (Newborns) के माता-पिता की भूमिका निभा रहे हैं.
जिला अस्पताल का एसएनसीयू यूनिट में डिलेवरी के बाद जांच के लिए बच्चे तो आते ही है, लेकिन इसके अलावा लावारिस मिले और दुष्कर्म पीड़िता के छोड़े बच्चों की यहां के डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ माता-पिता की तरह परवरिश कर उनकी देखभाल करते है. वहीं उनकी जरूरतों को भी डाॅक्टर और नर्स अपने पैसे से पूरा करते हैं. पिछले एक साल में लावारिस और दुष्कर्म पीड़िता के कुल 9 बच्चों को स्वस्थ कर अस्पताल के डाॅक्टरों की टीम इन बच्चों को बाल कल्याण समिति को सौंपा है. यूनिट में 8-8 घंटे के लिए नर्स और डॉक्टरों की ड्यूटी रहती है.
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एसएनसीयू प्रभारी डॉ. कृष्णा वास्केल ने बताया कि जिन बच्चों के माता-पिता का पता नहीं रहता है, हमें उनकी विशेष केयर करनी पड़ती है. ड्यूटी स्टाफ सभी बच्चों को संभालने के साथ बच्चों के लिए अतिरिक्त काम भी करता है. नर्स इनकी फीडिंग का पूरा ध्यान रखते है. ऐसे बच्चे जिनको झाड़ियों में और जंगलों में फेंक दिया जाता है, उन बच्चों की हालत बेहद कमजोर होता है. ऐसे में उनकी देखरेख करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. पूरा स्टॉफ ऐसे मामलों को एक मिशन की तरह ट्रीट करता है. जब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है, तो स्टाॅफ की खुशी अलग ही होती है. जिसके बाद बच्चों को चाइल्डलाइन द्वारा जो भी शासन द्वारा नामित शिशु ग्रह होते है, उन्हे सौंप दिया जाता है. बच्चों को जब तक कोई दंपत्ति नहीं मिल जाता अब तक उन्हें शासन के अधीन रखा जाता है.
शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. मिथुन कंसल ने बताया कि, आम बच्चो के साथ ही अनचाहे बच्चे भी आते है, जिनका उपचार करना बहुत कठिन हो जाता है. उनका वजन कम रहता है, वह गर्भकाल भी पूरा नहीं कर पाते है. ऐसे में उनकी शुगर, पल्स और अन्य चीजों नियमित रूप से चेक करना होता है. उनके स्वास्थ्य होने तक कई तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत होती है. जिन बच्चों के माता-पिता नही है़. उन बच्चों को जिला अस्पताल के डाॅक्टरों और नर्स माता-पिता की तरह देखभाल कर अपनी अलग ही मिसाल पेश कर रहे हैं.
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