
रणधीर परमार, छतरपुर। महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो. शुभा तिवारी पर मां सीता पर विवादित टिप्पणी की है। महिला कुलपति ने ओरछा में सीता माता को फेमिनिस्ट बताया। साथ ही राम को भगवान मानने से इनकार कर दिया। भावनाएं आहत होने पर छात्र संगठन ABVP उग्र हो गया और जमकर प्रदर्शन किया।
मां सीता को बताया फेमिनिस्ट
दरअसल, कुलगुरु प्रो. शुभा तिवारी एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ओरछा धाम गई थीं। इस दौरान उन्होंने अपने वक्तव्य में मां सीता को फेमिनिस्ट बताया। जिसकी वजह से हिंदू समाज के लोगों में रोष है। इस मामले को उजागर करने वाले विकास चतुर्वेदी नाम के शख्स ने कुलगुरु पर एक जिम्मेदार और प्रतिष्ठित पद पर होते हुए गैर जिम्मेदाराना बयान के आरोप लगाए थे।
कुलगुरु ने कहा- कोई आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं की
वहीं छात्र संगठन ABVP समेत छात्र-छात्राओं ने भी इसका खुलकर विरोध किया। प्रदर्शन को देखते हुए कुलगुरु ने इस पर जवाब दिया कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है। उन्होंने मां सीता के व्यक्तित्व को लेकर कोई भी आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं की थी।
शब्द वापस लेने के बाद खत्म हुआ प्रदर्शन
जब मामला बढ़ा और पुलिस भी यूनिवर्सिटी पहुंच गई तो आखिरकार कुलगुरु शुभा तिवारी ने कहा कि उनके बयान से अगर किसी की भावनाएं आहत हुई है तो वे अपने शब्द वापस लेती हैं। कुलगुरु ने अपने शब्द वापस लेने की बात कही। जिसके बाद प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राएं मान गए और और दो दिन से सुर्खियों में रहा मामला शांत हो गया
ABVP ने कहा- नारीवाद को प्रस्तुत करते हुए दिया मां सीता का गलत उदाहरण
ABVP कार्यकर्ता स्वेच्छा पाठक ने बताया कि “कुलगुरु ने अपनी स्पीच में नारीवाद को प्रस्तुत करते हुए मां सीता का उदाहरण बहुत गलत तरीके से दिया। छद्म नारीवाद जिसकी भारत में जरूरत भी नहीं थी उसे आगे करते हुए मां सीता के चरित्र पर गलत टिप्पणी की। सीता माता हमारी भारतीय संस्कृति की आदर्श हैं। हमने प्रदर्शन कर उनसे शब्द वापस लेने के लिए कहा।”
कुलगुरु की सफाई- जो कहा नहीं, वह जबरदस्ती बताया गया
इस मामले पर कुलगुरु प्रो. शुभा तिवारी ने सफाई देते हुए कहा, “17 तारीख को ओरछा में मैंने मां सीता के सशक्त होने की बात कही थी। जो मैंने बोला नहीं था, उसे भी बता दिया गया है। मेरा आशय मां सीता के प्रति सशक्त प्रतीक करने का है। अगर मैंने जानबूझकर अगर किसी को आहत किया है तो मैं सबसे पहले कह दूंगी कि मुझे खेद है। जो मैंने कहा नहीं है वह जबरदस्ती बताया गया है। मैंने कहा था, “मां सीता एक सशक्त प्रतीक हैं। आधुनिक युग में इक्कीसवीं शताब्दी में लड़कियों को आगे बढ़ने मां सीता जैसे मनोबल की आवश्यकता है।” मैंने बेटियों के पक्ष में बात कही थी।”
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