कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। भिंड जिले के दो थाना प्रभारियों को लापरवाही भारी पड़ी है। एक के खिलाफ जहां जांच के आदेश दिए गए हैं तो वहीं दूसरे को 6 महीने प्रशिक्षण के लिए भेजा जाएगा। दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में सुनवाई करते हुए न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा, पुलिस अधिकारियों को न कानून का ज्ञान है न जांच का तरीका पता है। ऐसे में आदेश की प्रति पुलिस महानिदेशक और पुलिस अधीक्षक भिंड को भी भेजी जाए। 15 दिन में आदेश का पालन करना होगा। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने दो अलग अलग मामलों की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिए हैं।

हाइकोर्ट ने भिंड देहात थाने के प्रभारी राम बाबू सिंह यादव को यह कहते हुए फिर से प्रशिक्षण सेंटर भेजने का आदेश दिया है कि उन्हें कानून का ज्ञान नहीं है ना जांच का तरीका आता है। इन्हें 6 महीने प्रशिक्षण पर भेजा जाए, ताकि वह कानून और जांच का तरीका सीख सकें। साथ ही भिंड के सिटी कोतवाली थाने के प्रभारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं 27 अप्रैल तक जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश करनी होगी।

बता दें कि भिंड देहात थाना पुलिस ने लूट और डकैती के आरोप में राजवीर सिंह जाटव नाम के आरोपी को 14 फरवरी 2022 को गिरफ्तार किया था। उसके खिलाफ सह आरोपी द्वारा दिए बयान के आधार पर केस दर्ज हुआ था। पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद फरियादी से पहचान नहीं कराई। साथ ही धारा 27 के तहत दिए बयानों के आधार पर दूसरे सबूत भी नहीं जुटाए। आरोपी राजवीर सिंह ने हाई कोर्ट में दूसरी बार जमानत याचिका दायर लगाई। पूरे सबूत कोर्ट के सामने पेश किए। शासकीय अधिवक्ता ने रामबाबू सिंह यादव को भी कोर्ट में बुला लिया और न्यायालय के सामने उपस्थित करा दिया। लेकिन इस दौरान रामबाबू कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे पाए, इसलिए कोर्ट ने प्रशिक्षण का अभाव पाया।

वहीं दूसरे मामले में संजय सिंह तोमर पर भिंड के सिटी कोतवाली थाने में चोरी और धोखाधड़ी का केस दर्ज है। इस आरोपी को महाराजपुरा थाने ने भी गिरफ्तार किया था। जब महाराजपुरा थाने ने गिरफ्तार किया था उस वक्त भिंड सिटी कोतवाली थाने में उसे फरार घोषित किया गया था। महाराजपुरा के केस में छूटने के बाद 23 मार्च 2022 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भिंड के सामने संजय ने सरेंडर कर दिया, लेकिन थाने ने अपने रिकॉर्ड को दुरुस्त नहीं किया। उसे फरार घोषित रखा।यह लापरवाही उस वक्त उजागर हुई जब हाई कोर्ट में संजय की ओर से जमानत याचिका दायर लगाई गई। तब पुलिस की लापरवाही का खुलासा हुआ। थाना प्रभारी को प्रोडक्शन वारंट संबंधी जानकारी नहीं थी। इसके चलते कोर्ट ने थाना प्रभारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।

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