हेमंत शर्मा, इंदौर। एक गरीब मजदूर की हत्या हो गई…परिजन तड़पते रहे…थाने में गिड़गिड़ाते रहे…लेकिन ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर तो दूर, इंसाफ का एक शब्द भी नहीं मिला। और जब मीडिया ने सवाल पूछा, तो इंदौर पुलिस के एक एडिशनल डीसीपी ने कह डाला “औकात नहीं है तो बात मत करो”। यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं, बल्कि इंदौर के एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा का असली चेहरा है, जो अब खुलकर सामने आ रहा है।

हत्या, ढील और चाय… फिर ठेकेदार रवाना!

दरअसल, आजाद नगर थाना क्षेत्र में एक गरीब मजदूर की बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। परिजनों ने इलाके के एक ठेकेदार पर सीधे तौर पर गंभीर आरोप लगाए। मृतक का शव दोपहर 2 बजे से थाने में रखा रहा। परिजन एफआईआर की मांग करते रहे, लेकिन शाम 7 बजे तक पुलिस ने कानों में तेल डाल रखा था। इतना ही नहीं… परिजनों का आरोप है कि जिस ठेकेदार पर हत्या का शक है, उसे पुलिस ने थाने बुलाकर चाय पिलाई और छोड़ दिया गया। कोई पूछताछ नहीं, कोई गिरफ्तारी नहीं, बस सांठगांठ और संवेदनहीनता।

जब सवाल किया तो अधिकारी ने खोया आपा

जब पत्रकारों ने पूरे मामले पर एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा से सवाल किए कि ‘आखिर ठेकेदार पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? परिजनों की बात क्यों नहीं सुनी जा रही? तो अधिकारी का रवैया बेशर्मी की सारी हदें पार कर गया। उन्होंने पत्रकार से कहा- ‘औकात नहीं है तो बात मत करो’। क्या अब गरीब के इंसाफ की मांग करना पत्रकारों की औकात से बाहर हो गया है? क्या पुलिस अब जनता की सुरक्षा नहीं, अपनी सत्ता के घमंड में जी रही है?

पुराना ट्रैक रिकॉर्ड: शिकायतें पहले भी, पर कार्रवाई नहीं

गोपनीय सूत्रों के मुताबिक, एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक कई बार शिकायतें पहुंच चुकी हैं। स्टाफ के लोग भी उनके व्यवहार से नाराज हैं। काम करने का तरीका तानाशाही से कम नहीं।

आरोप यह भी है कि एक हवाला मामले में करीब 11 करोड़ रुपये की रकम जब्त होने के बावजूद पूरी कार्रवाई को ‘जादूगरी’ से दबा दिया गया था। मामला अधिकारियों तक नहीं पहुंचाया गया और फाइलों में सब कुछ ‘मैनेज’ कर दिया गया।

रिपोर्टर से बदसलूकी, खबर छपते ही मचाया बवाल

जानकारी ये भी है कि जब लल्लूराम डॉट कॉम ने इस अधिकारी से जुड़ी खबर प्रमुखता से प्रकाशित की तो उस पर भी भड़क गए। रिपोर्टर से बदसलूकी की गई और पूरी नाराजगी का शिकार बना दिया गया। शायद सवाल पूछना आज के दौर में जुर्म बन चुका है।

क्या इंदौर कमिश्नरेट में पुलिस अफसरों की कोई जवाबदेही नहीं?

गरीब की हत्या हो जाए, परिजन थाने में बिलखते रहें, और ठेकेदार को छोड़ दिया जाए, ये कैसा कानून है? क्या पुलिस अब खुलकर पक्षपात करने लगी है? और जो मीडिया जनता के सवाल उठाता है, उसे औकात बताई जाती है?

यहां देखें एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा की अभद्रता का Video

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