हेमंत शर्मा, इंदौर। जिस देश की सरहदों पर खड़े होकर हमारे जवान अपनी जान की बाज़ी लगाते हैं, उन्हीं जवानों के साथ अपने ही देश में एक गहरी धोखाधड़ी हुई है। इंदौर की ‘गैलेंट्री लैंडमार्क’ नाम की कॉलोनी, जिसे देशभक्त सैनिकों के लिए समर्पित बताते हुए शुरू किया गया था, वह अब उनके लिए दर्द और धोखे की एक मिसाल बन चुकी है।

वादा किया था, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन का

वर्ष 2012 में जिस कॉलोनी का नाम ‘गैलेड्री लैंडमार्क’ रखा गया, उसे एक ‘वीर सैनिकों की कालोनी’ कहा गया। वादा किया गया कि यह कॉलोनी सिर्फ सेना के अफसरों और जवानों के लिए होगी। विज्ञापनों में बताया गया कि यहाँ VIP कम्युनिटी हॉल, चौड़ी पक्की सड़कें, सुंदर गार्डन, हर गेट पर सुरक्षा गार्ड, पानी की टंकी और हर घर में नियमित पानी की सप्लाई जैसी सभी सुविधाएं होंगी। सेना के जवानों ने अपने खून-पसीने की कमाई से यहां प्लॉट खरीदे। उन्हें लगा कि रिटायरमेंट के बाद परिवार के साथ एक शांत, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन मिलेगा। लेकिन 10 साल बाद भी यह कॉलोनी सिर्फ एक अधूरा सपना बनकर रह गई है।

सैनिकों के जज्बात से खिलवाड़

पांच-पांच बार बॉर्डर पर पोस्टिंग ले चुके जवान, जिन्होंने दुर्गम इलाकों में दुश्मनों से देश की रक्षा की, वे आज कलेक्टर ऑफिस की चौखट पर अपने परिवारों के साथ न्याय की भीख मांग रहे हैं। कॉलोनी में सड़कें टूटी पड़ी हैं, गार्डन सिर्फ कागज़ों में हैं, पानी की व्यवस्था राम भरोसे है, और सुरक्षा का नामोनिशान नहीं। एक फौजी की पत्नी ने रोते हुए बताया- “हमें कहा गया था कि ये सैनिकों की कॉलोनी है, लेकिन यहां तो कोई सुनवाई ही नहीं। हमारे पति देश की सेवा में हैं, और हम यहां नाली के पानी में जीने को मजबूर हैं।”

कलेक्टर ऑफिस से लेकर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री तक गुहार

अब तक 50 से ज्यादा सेना के अफसर और जवान अपने परिवारों के साथ कलेक्टर कार्यालय पहुंच चुके हैं। वे बार-बार कॉलोनी की स्थिति को लेकर डेवलपर्स को अवगत करा चुके हैं। कभी चिट्ठी से, कभी फोन से, तो कभी खुद ऑफिस जाकर पर कोई सुनवाई नहीं हुई। थक-हारकर अब उन्होंने मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव को पत्र लिखकर इस धोखाधड़ी की जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।

कभी सपना था, अब सज़ा बन गई है ये कॉलोनी 

जिस कॉलोनी को देश के वीर जवानों के लिए ‘आदर्श आवास’ बताया गया था, आज उसकी हालत इतनी खराब है कि वहां रहना एक सज़ा जैसा लग रहा है। वीरता के नाम पर मार्केटिंग कर करोड़ों की वसूली करने वाले कॉलोनी डेवलपर्स अब गायब हैं, और जिनके नाम पर यह कॉलोनी बिकी, वे आज ठगे जाने का दर्द लेकर दर-दर भटक रहे हैं। इन सैनिकों की एक ही मांग है कि  “हमने देश के लिए अपना सब कुछ दिया है, अब देश हमें वो घर दे, जो हमारे नाम पर बेचा गया था।” यह सिर्फ जमीन का मामला नहीं है, यह उन सैनिकों के सम्मान, उनकी मेहनत और उनके परिवारों की उम्मीदों से जुड़ा है।

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