
शुभम नांदेकर, पांढुर्णा. जिले के ग्राम दुधालाकलां के कृषक अशोक साहू ने अपनी मेहनत और नवाचार के बल पर बंजर जमीन को उपजाऊ खेतों में बदलने की मिसाल कायम की है. पहले वे पारंपरिक रासायनिक खेती से जुड़े थे, लेकिन पानी की कमी और जंगल किनारे खेत होने के कारण जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था. इससे उनकी आय भी सीमित थी, जिससे वे लगातार संघर्ष कर रहे थे.
प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ाया कदम
अशोक साहू को आत्मा परियोजना के माध्यम से रायसोनी कृषि महाविद्यालय, साईंखेड़ा में कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर से मिलने का अवसर मिला. उनके मार्गदर्शन और कृषि विभाग के सहयोग से उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाने का निर्णय लिया. उन्होंने अपने खेतों में जीवामृत, बीजामृत, दशपर्णी अर्क और घनजीवामृत का प्रयोग शुरू किया, जिससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार हुआ और रासायनिक खादों पर निर्भरता समाप्त हो गई.
किसान ने बताया कि प्राकृतिक खेती सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाने का तरीका है. इससे मेरी फसलें अधिक स्वस्थ और पोषक बन रही हैं. साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी बनी हुई है.
समन्वित कृषि प्रणाली से आर्थिक समृद्धि
अशोक साहू ने समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाते हुए सेम, मोगरा, पोपट, बैंगन, मिर्च, धनिया, पालक, मेथी, अदरक और करेला जैसी फसलें लगाईं. पानी की समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने तालाब का निर्माण करवाया और सोलर फेंसिंग लगवाई, जिससे जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान को पूरी तरह समाप्त कर दिया.
अब अशोक साहू के खेत से सालाना लगभग तीन लाख रुपये की आमदनी हो रही है, जो पहले के मुकाबले दोगुनी है. उन्होंने अपने खेत में बायोगैस संयंत्र भी स्थापित किया, जिससे उनके परिवार के लिए भोजन पकाने की व्यवस्था सुगम हो गई और बची हुई स्लरी खाद के रूप में खेत में उपयोग की जा रही है.
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद मेरी लागत बहुत कम हो गई है. अब मुझे केवल गुड़ खरीदना पड़ता है, बाकी सभी आवश्यक चीजें खेत और पशुधन से ही प्राप्त हो जाती हैं.
निरंतर प्रगति की ओर बढ़ते कदम
किसान की इस सफलता में कृषि विभाग का सहयोग सराहनीय रहा है. समय-समय पर उन्हें विभागीय मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मिला, जिससे उनकी खेती में लगातार सुधार होता गया. आत्मा परियोजना के तहत इस वर्ष उन्हें एलाइड प्रदर्शन अंतर्गत मछली बीज उपलब्ध कराया गया है, जिससे उन्होंने अपने बलराम तालाब में मछली पालन भी शुरू कर दिया है. जिससे उन्हें अतिरिक्त आय प्राप्त होगी.
किसान अशोक की यह सफलता उन सभी किसानों के लिए प्रेरणादायक है, जो प्राकृतिक खेती अपनाकर कम लागत में अधिक लाभ कमाना चाहते हैं. उनकी यह कहानी सिद्ध करती है कि सही मार्गदर्शन और मेहनत से किसी भी बंजर भूमि को हरियाली में बदला जा सकता है.
Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें