(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
कमस से, बड़ी एडवांस है एमपी की ब्यूरोक्रेसी
इसमें दो मत नहीं कि नई सरकार और नई ब्यूरोक्रेसी का चोली दामन का साथ होता है। एक ओर नई कलेवर की नई सत्ता तो अफसरों की नई पोस्टिंग और थोक में आईएएस-आईपीएस अफसरों के तबादले। सुनामी की तरह प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी अपने मुख्यमंत्री को नहीं चुन पा रही हो, लेकिन आईएएस और आईपीएस अफसरों ने अपने पसंद के जिलों को जरूर चुन लिया है। इन अफसरों ने साउथ के अफसर एक कमद आगें हैं। हालांकि बीजेपी के विजय श्री हासिल करने वाले दिग्गजों पर हाजिरी भी दर्ज कराई जा चुकी है। वाट्सअप कॉल की बधाई के साथ भेजे गए महंगे गुलदस्तों की महक तो मंत्रालय के गलियारों तक पहुंच गई है। सुना है मनपसंद जिलों के साथ विभागों में आदम दर्ज कराने के लिए सीनियर अफसरों से लॉबिंग भी अंतिम दौर पर है। इनमें ऐसे अफसर ज्यादा हैं जिन्होंने चुनावों कालखंड में बेहतर परफार्मेंश दिया और अब नगर निगम कमिश्नर्स से प्रमोशन पाकर कलेक्टर की कमान चाहते हैं।
हार से हुए बेरोजगार तो नए पर पुरानों का दबदबा
बीजेपी की प्रचंड लहर के बाद भी कुछ मंत्रियों की हार से माननीय ही नहीं बल्कि उनका स्टाप भी सदमें हैं। हालात ऐसी है कि मानों एक बेरोजगार सीमित दायरे में सिमटे रोजगार की तलाश में हो। दरअसल, यहां बात उन मंत्रियों के ओएसडी और निज सचिवों की हो रही है जिनके नेता जी चुनावी घमासान में परास्त हो गए। लिहाजा अब खेंमा बदलने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं बचा। हालांकि मंत्रियों ने अब तक इन्हें टाटा बाय-बाय नहीं कहा है। लेकिन, हार के दो तीन दिन बार ही दरबार में आमद भी दर्ज नहीं कराई गई है। वक्त का खेल भी ऐसा कि मंत्री पद के दावेदारों के यहां भी पहले से ही कई अंगद पांव जमाए हुए हैं। लिहाजा अब लोकसभा के परिणामों के इंतजाम में हैं। वैसे इस लिस्ट में 10 मतलब पूरे 10 ओएसडी और निज सचिवों के नाम शामिल हैं।
ऐसी समीक्षा तो गांधी और खड़गे भी नहीं कर पाएंगे
एक कलाम है कि तुम्हारी जीत से हमारी हार के किस्से मशहूर हैं। इन दिनों प्रदेश में हो भी ऐसा ही रहा है। बड़ी जीत से बड़ी हार के किस्से ज्यादा गूंज रहे हैं। अब हुआ यूं कि प्रदेश कांग्रेस कार्यालय की तीसरे माले पर बड़े पदाधिकारियों का हार पर मंथन जारी था। कभी बात चुनाव आयोग में शिकायतों की हुई तो कभी दक्षिण-पश्चिम विधानसभा की अप्रत्याशित हार की। इस गहन विचार मंथन को गंभीरता से एक पदाधिकारी सुन रहे थे। वो प्रदेश पदाधिकारी जो विंध्य में कांग्रेसी दिग्गज के बड़े समर्थक माने जाते हैं। मंथन का माहौल भी अब गर्म होने लगा। लिहाजा ठाकुर साहब उठे और तपाक से ऐसा बोले कि सबकी बोलती ही बंद हो गई। दरअसल, दो टूक शब्दों में नेता जी ने कहा कि कम से कम विरोध प्रदर्शन के लिए तो पीसीसी से बाहर निकल जाते। अब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। फिर क्या था सन्नाटा पसर गया।
चुनाव में वसूली भाई ने काटी चांदी
चुनाव के बाद कांग्रेस के अंदर हाहाकार मचा हुआ है नेता हार पर खुलकर कुछ नहीं कह रहे लेकिन बंद कमरे में एमपी अलाकामन के करीबी नेताओं पर जमकर भड़ास निकाल रहे है और आरोप तो यहां तक लगाए जा रहे है की टिकट में करोड़ों रुपये का खेल हुआ है और इसके साथ ही कांग्रेस के कई धन्ना सेट नेताओं से चुनाव के दौरान पार्टी फंड के नाम पर खूब वसूली की गई है….अब सभी धन्ना सेट नेता जी हिसाब किताब में जुटे हुए है क्योंकि पार्टी के साथ खुद के चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च हुए और हार भी गए सभी….अब सभी नेता पता लगाने में जुट गए है ये पैसा पार्टी फंड तक पहुंचा के नहीं या फिर बीच में कोई खेल हो गया….
नेताजी की शॉपिंग
एमपी चुनाव में कांग्रेस के अंदर कई बड़े-बड़े खेल हुए है मीडिया विभाग भी इससे अछूता नहीं रहा…..पीसीसी में चर्चा गर्म है मध्यप्रदेश मीडिया विभाग के एक पदाधिकारी ने चुनाव करवाने दिल्ली से आईं एक मीडिया विभाग की पदाधिकारी और उनकी मां को डीबी मॉल में शॉपिंग करवाई है….शायद नेताजी को उम्मीद थी सरकार बन जाएगी तो कुछ भला हो जाएगा लेकिन सरकार बनी नहीं उल्टा डेढ़ लाख रुपये अलग खर्च हो गए….खैर कोई ना नेताजी अगली बार के लिए बेस्ट ऑफ लक
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