ऑफलाइन आवेदन आ गया था क्या

मध्य प्रदेश में इन दिनों चल रही तबादलों की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन है। आवेदन करने से लेकर ऑर्डर जनरेट होने तक की प्रक्रिया ऑनलाइन ही रहेगी। इस प्रक्रिया में आवेदन कन्फर्म होने का दौर भी चल रहा है। इस संबंध में बंगलों से लेकर विभागों तक पूछताछ का दौर भी जारी है। एक आवेदक कर्मचारियों के बीच कन्फर्मेशन की जानकारी लेने पहुंचा तो बाबू पूछ बैठे ऑफलाइन आवेदन आ गया था क्या ?

कृपया तबादलों के लिए न मिलें

मध्य प्रदेश में तीन साल बाद तबादलों से महीनेभर के लिए स्टे हटा है> शुरुआत में तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से तबादलों के लिए मंत्रियों के बंगलों पर मेला सा लग रहा है। एक-दो बार नहीं, आवेदक कई-कई बार बंगलों के चक्कर काट रहे हैं। इससे परेशान कई बंगलों पर तो बकायदा नोटिस तक चस्पा कर दिए गए कि तबादलों की प्रक्रिया ऑनलाइन है, ऐसे में ऑफलाइन आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे। एक मंत्रीजी तो गजब कर बैठे, उनके बंगले पर लिख दिया गया कि कृपया तबादलों के लिए न मिलें।

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सिर्फ एक दिन और फिर शुरू हो गया बड़ा खेला

मध्यप्रदेश में गजब का आबकारी विभाग चल रहा है। मनमानी ऐसी की पूछो मत। खैर…इसमें कोई नई बात भी नहीं। क्यों कि आबकारी विभाग में सालों से ऐसी ही मनमानी जारी है। लेकिन, बीते शुक्रवार को शराब ठेकेदारों की मेहरबानी के चर्चे शौकीन लोगों तो ठीक बल्कि मंत्रालय में भी गूंज उठे। दरअसल, अचानक से सुराप्रेमियों पर शराब कारोबारियों ने अचानक रहम खाया। रहम शब्द इसलिए क्यों कि राजधानी में आबकारी के नियम नहीं बल्कि माफियाओं के भाव चलते हैं, मनमानी लूट के भाव। हुआ यूं कि एक दिन के लिए राजधानी में शराब के दामों में भारी गिरावट की गई।

आश्चर्य इस बात का यह गिरावट आबकारी नियमों के मुताबिक ही थी। ठीक 24 घंटे बाद फिर मनमानी वसूली शुरू हो गई। वैसे अंदर की बात तो यह है कि प्रदेश में नए शराब कारोबारियों की मनमानी को लेकर सोशल मीडिया में वीडियो से लेकर आबकारी में शिकायतों का अंबार लगा। लिहाजा बदमान वरिष्ठों के निर्देश के बाद उचित दामों में पर बिक्री शुरू की गई। तब तक उचित दाम पर शराब बिक्री की गई तब तक यह बात वरिष्ठों के वरिष्ठों तक नहीं पहुंचाई गई थी। यह बात जैसे ही बड़े शिष्टाचार में लीन वरिष्ठों के वरिष्ठों को लगी तो दाम फिर आसमान पर पहुंचा दिए गए। इसे कहते हैं शिष्टाचार। नियम कायदों की बात यहां नहीं होती।

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ट्रांसफर-ट्रांसफर और…

प्रदेश में ट्रांसफर को लेकर इस समय मंत्री जी परेशान हैं। बंगलों के बाहर बोर्ड लगाना पड़ रहे हैं। नसीहत इस बात कि सब ऑनलाइन होगा। लेकिन, सिफारिशों का काम तो जारी है। प्रभारी मंत्री तो ठीक बल्कि अफसर तक सिफारिश में लगे हुए हैं। दूसरी ओर संबंधित क्षेत्रों के मंत्री भी अपने क्षेत्रों के शिक्षकों के स्थानांतरण के लिए नोटशीट, पत्र लिख रहे हैं। जिसकी पकड़ नहीं वो बेचारा कहां जाए। बात भले ही ऑनलाइन प्रक्रिया की हो रही हो लेकिन किसका, कहां तबादला होना है यह तो माननीय और अफसर जानते ही है। अचरज की बात तो यह भी है बिना कार्यकर्ता या पदाधिकारी के सिफारिश की सीट पर दस्तखत भी मुश्किल हो रहा है। बाकी तो बाबुओं की नगरी भोपाल में शिष्टाचार के आचरण का ही बोल बाला है।

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