अनिल सक्सेना, रायसेन। मध्य प्रदेश के रायसेन (Raisen) में तोप की आवाज (cannon sound) सुनकर मुस्लिम समाज के लोग रोज़ा खोलते (Iftar) हैं और सेहरी (Sehri) खाना बंद करते है। यह 300-400 साल पुरानी परंपरा है। जो आज भी रायसेन में कायम है। सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी पर तोप चलती है।
नवाबी शासन से चली आ रही परंपरा
जिले में रमजान (Ramzan) के महीने में सेहरी और इफ्तारी के समय की जानकारी देने के लिए तोप चलाए जाने की परंपरा है। यह परंपरा पिछले करीब 300 साल से निभाई जा रही है। आज भी मुस्लिम समाज के लोग किले की पहाड़ी से चलने वाली तोप की आवाज सुनकर ही रोजे खोलते हैं। नवाबी शासन काल से यह परंपरा चली आ रही है। इस तोप की गूंज करीब 30 गावों तक सुनाई देती है, जिसे सालों से एक ही परिवार चलाता आ रहा है।
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प्रशासन से मिलता है लाइसेंस
इस तोप को चलाने के लिए बाकायदा जिला प्रशासन एक माह का लाइसेंस (License) जारी करता है। रमजान की समाप्ति पर ईद (Eid al-Fitr) के बाद तोप की साफ-सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है। तोप चलाने के लिए आधे घंटे पहले तैयारी करना पड़ती है, तब कहीं जाकर समय पर तोप चल पाती है।
देश में रायसेन दूसरा ऐसा शहर जहां तोप चलाकर दी जाती है सूचना
तोप चलाने से पहले दोनों टाइम मार्कस वाली मस्जिद (Mosque) से सिग्नल मिलता है। सिग्नल के रूप में मस्जिद की मीनार पर लाल रंग बल्ब जलाया जाता है। इसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है। ऐसा बताया जाता है देश में राजस्थान (Rajasthan) में तोप चलाने की परंपरा है। उसके बाद देश में मप्र का रायसेन दूसरा ऐसा शहर है, जहां पर तोप चलाकर रमजान माह में सेहरी और इफ्तारी की सूचना दी जाती है।
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