शुभम जायसवाल, राजगढ़। मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। जहां इंसान की जान से ज्यादा कागज की अहमियत दिखी! घायल लोग सड़क पर तड़पते रहे और पुलिस पंचनामा बनाती रही! घायल लोग दर्द से कराह रहे थे, मदद के लिए पुकार रहे थे, लेकिन पुलिस की संवेदना कहीं गुम हो चुकी थी। आखिर पुलिस के लिए क्या ज्यादा जरूरी है इंसान की जान या पंचनामा ?
एक सड़क हादसा, चार घायल युवक और पुलिस जिनकी पहली जिम्मेदारी जीवन बचाना होनी चाहिए थी, लेकिन मापक फीते से सड़क नापने में जुटी रही, पंचनामा बन रहा था और घायल मदद की भीख मांग रहे थे। सरकार कहती है, ‘राहवीर योजना’ के तहत हर घायल को तत्काल अस्पताल पहुंचाया जाएगा, मदद करने वाले को इनाम मिलेगा, लेकिन जमीनी हकीकत देखिए… न कोई एंबुलेंस पहुंची, न पुलिस ने निजी वाहन से मदद की और न ही इंसानियत दिखाई। तो सवाल सीधा है कि क्या ये सिर्फ दिखावे की योजनाएं हैं ? क्या पुलिस को कागज भरने की ट्रेनिंग है, लेकिन जान बचाने की नहीं ?
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पुलिस का नहीं पसीजा दिल
यह तस्वीरें हैं राजगढ़ जिले के कुरावर थाना क्षेत्र की है। जहां तलेन रोड पर मंगलवार शाम एक जबरदस्त सड़क दुर्घटना हुई। ललोती गांव के इलियास और जहीर खा तथा सवर्सी गांव के गोविंद और मनीष, दो बाइक पर सवार थे, लेकिन सामने से टक्कर हुई और चारों युवक सड़क पर बुरी तरह घायल होकर गिर पड़े। स्थानीय लोगों ने तत्परता दिखाई और पुलिस को कॉल किया, लेकिन जब पुलिस आई तो वह मदद नहीं की, मापने की तैयारी में आई थी। घायलों की हालत देखकर भी पुलिस का दिल नहीं पसीजा, स्ट्रेचर दूर, गाड़ी तक नहीं लाए। पुलिस कागज और फीता लिए पंचनामा करती रही और घायल चीखते रहे कि हॉस्पिटल पहुंचा दो, प्लीज़!
उठे कई सवाल
- राहवीर योजना सिर्फ सरकारी कागजों में ? जमीन पर क्यों नहीं ?
- क्या मापने का फीता इंसान की जान से बड़ा हो गया है?
- क्यों नहीं दिखाई पुलिस ने संवेदनशीलता और तत्काल एक्शन?
- क्या जिम्मेदार पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होगी या फिर एक और लीपापोती?
- क्या राजगढ़ SP बताएंगे कि ट्रेनिंग में संवेदना सिखाई जाती है या नहीं?
सरकार योजनाएं बनाती है, पुलिस कागज भरती है और आम आदमी सड़क पर तड़पकर अपने हिस्से की इंसानियत ढूंढता है। लेकिन इस पूरे मामले में दो वीडियो सामने आया है एक में पुलिस पंचनामा बनाती हुई नजर आ रही है वहीं दूसरे सीसीटीवी फुटेज में पुलिस घायलों को 100 डायल गाड़ी में ले जा रही है, लेकिन इस पूरी घटना में अधिकारी घायलों के प्रति पुलिस के अमानवीयता को नकारते नजर आए।
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इस मामले में नरसिंहगढ़ के एसडीओपी उपेंद्र सिंह भाटी से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह घटना 5 बजकर 53 मिनट पर हुई थी। घटनास्थल से करीब 2 किलोमीटर दूर पर डायल 100 खड़ी थी। सूचना मिलते ही 10 मिनट के अंदर एसआई उइके मौके पर पहुंच गए। लेकिन घायल व्यक्ति के पैर में बहुत ज्यादा चोट थी, हड्डी निकल गई थी। इसलिए उसे डायल 100 में शिफ्ट करना संभव नहीं था। इसके बाद 108 एंबुलेंस को कॉल किया गया, जब वह नहीं आई तो मजबूरी में एसआई उइके ने डायल हंड्रेड के जरिए घायल को अस्पताल पहुंचाया। इसमें जानबूझकर अमानीवयता की दृष्टिकरण से कुछ नहीं किया गया है।

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