सुशील खरे, रतलाम। मध्य प्रदेश के रतलाम के डॉ लक्ष्मी नारायण पांडेय मेडिकल कॉलेज से एक अनोखा और सनसनीखेज मामला सामने आया। जहां कुछ आदिवासी पूजा सामग्री और अन्य सामान लेकर पहुंचे। ढोल व थाली की थाप पर नृत्य करते रहे। इस समय कुछ पुरुषों के हाथ में खुली तलवारे भी देखी गई और वह उसे लहराते हुए नृत्य कर रहे थे। यह नजारा देखकर मेडिकल कॉलेज में आए लोगों की उनके आसपास भीड़ लग गई। इस नजारे को कोतुहल से देखते रहे। इस दौरान एसडीएम की गाड़ी ने भी वहां पर प्रवेश किया था। इसमें एसडीएम उपस्थित थे या नहीं यह कह नहीं सकते है। आइए जानते है पूरा मामला क्या है…

कीटनाशक पीने से हुई थी मौत

जानकारी के मुताबिक, लगभग दो माह पहले बाजना तहसील के ग्राम छावनी झोडिया नामक गांव में एक आदिवासी युवक कमलेश की कीटनाशक पीने से मौत हो गई थी। बताया जा रहा है कि उसकी मृत्यु मेडिकल कॉलेज में हुई थी। इसके बाद उसका दाह संस्कार भी हो गया था। लेकिन परिवार में मृतक की बहन का कहना था कि वह युवक उसके सपने में आकर बार-बार कह रहा है उसकी आत्मा वह मेडिकल कॉलेज में है और उसको वहां से आकर ले जाए।

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आत्मा को न्योता देकर ले गए साथ!

इसके चलते मृतक के परिवार के लोग व समाज के लोग मेडिकल कॉलेज पहुंचे और वहां पर उन्होंने विधि विधान से पूजा पाठ कर नृत्य किया और उनके अनुसार वह आत्मा को न्योता देकर वापस अपने साथ ले गए। अब उनके द्वारा उसकी शांति प्रक्रिया की जाएगी। वासी परंपरा के अनुसार, उनका कहना था कि जिस स्थान से व्यक्ति की मृत्यु होती है, वही पर जाकर उसकी आत्मा को शांति मिलती है। इस तरह के नजारे मेडिकल कॉलेज के अलावा जिला चिकित्सालय बाल चिकित्सालय में देखना आम बात है। आदिवासियों में इस पूरे कार्य को परंपरा माना जाता है और वह इस परंपरागत तरीके से करते हैं। यही कारण है कि इन्हें कोई रोकता भी नहीं है।

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जागरूकता जरूरी

हालांकि आधुनिक दौर में इस तरह के अंधविश्वास की कहानी की कोई जगह दिखाई नहीं देती है। लेकिन परंपरा के नाम पर रतलाम जिले में आवश्यकता है आदिवासी अंचल में जागरूकता अभियान चलाने की और आदिवासियों में इस प्रकार की परंपराओं को लेकर जागरूकता फैलाने की।

इस संदर्भ में आदिवासी समाज के जागरूक शिक्षित और समाजसेवी लोगों का कहना है कि जागरूकता बहुत जरूरी है। समय-समय पर इसके प्रयास किए जाते रहे हैं और वह आगे भी जारी रहेंगे। लल्लूराम डॉट कॉम का इस खबर को प्रकाशित करने का उद्देश्य किसी की परंपरा और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। सिर्फ जागरूकता उत्पन्न करना है।

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