अनमोल मिश्रा, सतना। मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में विकास का दावा किया जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। ताजा मामला सतना जिले से सामने आया है। जहां आदिवासी जीवन की मूलभूत सुविधाओं, सड़क, बिजली, पानी के लिए जूझते और जद्दोजहद कर रहे हैं। राज नेताओं के लिए यह वर्ग आज भी केवल एक वोट बैंक है, उससे ज्यादा कुछ भी नहीं।
दरअसल, यह मामला नगर परिषद चित्रकूट के आदिवासी बस्ती थरपहाड़ का है। जहां आजादी के 77 साल बाद भी लोग नारकिय जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। विकास क्या है, कैसा होता है और किस चिड़िया का नाम है, बस्ती के आदिवासियों को नहीं मालूम है। वहां कोई बीमार हो जाए या फिर किसी की मौत हो जाए, तो उस स्थित में बस्ती से मुख्य सड़क तक लाने और ले जाने के लिए केवल चार कंधों का ही सहारा बचता है।
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बस्ती निवासी 16 वर्षीय बलबीर मवासी जयपुर के बीरनसर कस्बे में मजदूरी कर रहा था। जहां उसकी बीते दिनों मौत हो गई थी। उसके शव को शनिवार को वाहन से थरपहाड़ लाया गया, लेकिन दुर्भाग्य से शव वाहन से उसके घर तक नहीं जा सका।कारण पक्की सड़क का नहीं होना, जिसके बाद मृतक के शव को चारपाई पर लोगों ने कंधा दिया। लगभग दो किलोमीटर दूर ग्राम थरपहाड़ तक ले जाया गया। यह कहना उचित होगा कि जिम्मेदार बस अपनी वोट बैंक की रोटी सेकने काम करते हैं।
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