अजयारविंद नामदेव,शहडोल। अजब एमपी की गजब तस्वीर अक्सर सामने आती रहती है. शहडोल जिले के आदिवासी ग्रामीण बच्चों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. जैतपुर क्षेत्र ग्राम मुसरा के ग्रामीण बच्चों को शहर की तरह आधुनिक झूला झूलने को नशीब नहीं हुआ, तो गांव में पड़े कबाड़, साइकिल के टायर और लकड़ियों से देसी जुगाड़ का झूला तैयार कर लिया. अब देसी झूले में बच्चे जमकर लुफ्त उठा रहे हैं. उनके इस देसी जुगाड़ के झूले की हर ओर जमकर तारीफ हो रही है. लोगों का कहना कि इस झूले को देखकर उनके बचपन की याद आ गई.

हम भारतीय पैदाइशी जुगाड़ू होते हैं. अब देख लीजिए आदिवासी ग्रामीण बच्चों को आधुनिक झूले झूलने को नहीं मिला, तो वो भगवान भरोसे नहीं बैठे, बल्कि अपना ज़बरदस्त बंदोस्बस्त खुद ही कर डाला. ग्रामीण बच्चों ने गांव में पड़े कबाड़, साइकिल के टायर और लकड़ी से देसी जुगाड़ का झूला तैयार कर डाला. बच्चों ने देशी झूले में तकनीकी चीजों का ध्यान देते हुए नेक्स्ट लेवल देसी जुगाड़ से झूला तैयार किया है. इस झूले की खास बात यह है कि आम के पेड़ की उस टहनी में इन्होंने झूला तैयार किया है, जो झूला झूलने के दौरान बाइब्रेट होता है यानी गाड़ी के साकप की तरह काम करता है. जिससे ज्यादा लोड होने पर झूला टूटने का खतरा नहीं रहता है.

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ये इतना अनोखा जुगाड़ है कि सोशल मीडिया पर लोग इसे बिना शेयर किए नहीं रह पा रहे हैं. इस वीडियो को देखकर कुछ लोग क्रिएटिविटी की दाद दे रहे हैं, तो कई लोगों की बचपन की याद ताज़ा हो गई है. एक यूजर ने लिखा कि हम लोग भी बचपन में इस पर बहुत मजा लिए है, हम लोगों के यहाँ सबसे अच्छा और हल्का झूला आम के पेड़ पर बनता है. तेज़ भी घूमता है, जाने कहां गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे.

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आवश्यकता अविष्कार की जननी है. ये कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी. हर कोई अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लेता है. खासकर बच्चों के साथ अक्सर ये होता है. जब वो मस्ती के मूड में होते हैं, तो नए नए कारनामे करते हैं. ऐसे में अगर गरीब बच्चों को आधुनिक झूले नहीं मिले और वैसा ही झूले का लुफ्त उठाना था, तो उन्होंने आधुनिक तरीके का देसी जुगाड़ से झूला तैयार कर लिया. सावन के माह में अब बच्चे, बूढ़े और जवान सभी इस देश जुगाड़ू झूले का लुफ्त उठा रहे हैं. बच्चों का यह देश जुगाड़ झूला सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

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