अगर आप भी मध्य प्रदेश घूमने जाने का प्लान कर रहे हैं, तो यह खबर खास आपके लिए है. इन दिनों में सैलानियों का जमावड़ा लगा हुआ है. पर्यटन स्थल पंचमढ़ी, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, अमरकंटक और सांची घूमने के लिए लोग दुनिया भर से आते हैं. आज हम आपको इन स्थानों से परिचित कराने वाले है. इसकी खासियत भी बताएंगे.

पंचमढ़ी

अगर गर्मियों की तपिश से राहत लेना चाहते है, तो मध्यप्रदेश में एक मात्र हिल स्टेशन है, जहां आप प्राकृतिक सुन्दरता को निहार सकते है. जी हां हम बात कर रहे है पंचमढ़ी की. पंचमढ़ी नर्मदापुरम जिले की पिपरिया तहसील मुख्यालय से 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, वहीं राजधानी भोपाल से पंचमढ़ी की दूरी लगभग 206 किमी है. एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल होने के कारण यह सड़क, रेल और वायुमार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है. इस कारण आप यहां आसानी से पहुंच सकते है. मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले में स्थित पंचमढी अपने प्राकृतिक सौदर्य के लिए बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में भी पहचान रखता है. सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है. यहां घने जंगल, कलकल करते जलप्रपात और तालाब प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगा दी है. यहां के जंगलों में शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू, भैंसा तथा कई अन्य जंगली जानवर देखने के लिए मिलते है. सर्दियों के मौसम में यहां तापमान लगभग 4-5 डिग्री सेंटीग्रेट रहता है, लेकिन मई-जून के महीनों में जब मध्य प्रदेश के अन्य भागों में तापमान 40-45 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच जाता है उस समय भी पंचमढ़ी में पारा 35 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक नहीं होता है, इसी कारण से यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है.

बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान

क्या आप जंगल में रहने वाले जानवारों देखना पसंद करते है, तो एक जरूर बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान घुमने जाए. मध्य प्रदेश राज्य के उमरिया जिले में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान वन्य अभयारण्य स्थित है. 1968 में राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था. यह एक ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जो 32 पहाड़ियों से घिरा है. इस उद्यान में एक मुख्य पहाड़ है. बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान 448 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. पार्क में साल और बंबू के वृक्ष प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाते हैं. यहां नीलगाय और चिंकारा सहित हर तरह के वन्यप्राणी और पेड़ हैं. इस राष्ट्रीय उद्यान में पशुओं की 22 और पक्षियों की 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं. हाथी पर सवार होकर या फिर वाहन में बैठकर इन वन्यप्राणियों को देखा जा सकता है. कुछ सालों पहले यहां प्राचीन कालीन मंदिरों और गुफाओं की खोज की गई, जिसमें छत्तीसगढ़ के पुरातत्विद रमेश कुमार वर्मा का विशेष योगदान रहा है. जबलपुर पुरातात्विक सर्वेक्षण की टीम ने कई दिनों के प्रयास से प्राचीन दुर्लभ मुर्तिया और विशेष शिलालेख को गुफाओं के अंदर से खोजे निकाला. बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान जंगली जानवरों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है.

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अमरकंटक

अमरकंटक मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर जिले का लोकप्रिय तीर्थस्थलों में एक है. यह मैकाल की पहाड़ियों में बसा हुआ है. अमरकंटक से नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थान भी है. यह समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचाई पर है. इस स्‍थान पर ही मध्‍य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों का मेल होता है. यहां आदिवासी गोंड जाति निवास करती है. महादेव पहाड़ियाँ भारत की नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच स्थित हैं. खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाड़ियाँ और शांत वातावरण सैलानियों को लुभाती है. प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यहां आना काफी पसंद करते हैं. माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं, जिन्‍हें दुर्गा की प्रतिमूर्ति माना जाता है. अमरकंटक बहुत से आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी जाना जाता है. ये 2000 से 3000 फुट तक की ऊँचाई वाले पठार हैं, जो दक्कन के लावा से ढँके हैं. महादेव पहाड़ी के दक्षिण की ढालों पर मैंगनीज और छिंदवाड़ा के निकट पेंच घाटी से कुछ कोयला प्राप्त होता है. यहाँ का प्रसिद्ध पहाड़ी क्षेत्र मैकल पर्वत दूधधारा है. अमरकंटक छोटा नगर है.

सांची

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में सांची स्थित है. वहीं राजधानी भोपाल से 46 किलोमीटर की दूर पर स्थित है. सांची एक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का धार्मिक स्थल है. सांची कई स्तूपों का स्थल है,जो एक पहाड़ी चोटी पर बनाए गए थे. अशोक ने पहला स्तूप बनवाया और यहां कई स्तंभ बनवाए गए. प्रसिद्ध अशोक स्तंभों के मुकुट, जिनमें चार शेर पीछे की ओर खड़े हैं, को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है. सांची भारत में सबसे अधिक विकसित और आकर्षक बौद्ध स्थल है. सांची मुख्य रूप से स्तूपों और स्तंभों का एक स्थान है, लेकिन भव्य प्रवेश द्वार इस स्थान पर अनुग्रह करते है. सांची ने बौद्ध धर्म को अपनाया जिसने हिंदू धर्म की जगह ले ली. स्तूपों का जीर्णोद्धार कार्य 1881 में शुरू हुआ और आखिरकार 1912 और 1919 के बीच इनकी सावधानीपूर्वक मरम्मत की गई और इन्हें बहाल किया गया. प्रवेश द्वार प्रारंभिक शास्त्रीय कला के बेहतरीन नमूने हैं, जिन्होंने बाद की भारतीय कला की संपूर्ण शब्दावली का बीज बिस्तर बनाया. स्तंभों पर उकेरे गए चित्र और स्तूप घटनाओं की चलती कहानी को बुद्ध का जीवन बताते हैं.

खजुराहो

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो बहुत ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है. खजुराहो अपने मंदिरों की बाहरी दीवारों पर बनी कामुक मूर्तियां और कामसूत्र से प्रेरित नकाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है. जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी हुई होती है. प्रकृतिक सौंदर्य के बीच मंदिरों की चमक और भी बढ़ जाती है. हर साल यहां सैलानियों की आवजाही लगी रहती है.

प्रमुख पर्यटन स्थल खजुराहो में काफी जश्न जैसा माहौल रहा है. यहां के होटल व रिसॉर्ट पर्यटकों से भरे हुए हैं. यहां विदेशी पर्यटकों की संख्या काफी ज्यादा देखने को मिलती है. वहीं खजुराहो से चंद किलोमीटर दूर रनेह वाटर फॉल, केन घड़ियाल अभयारण्य से लेकर तमाम जगह पिकनिक और पार्टी करने जैसा नजारा देखने को मिलता है.

खजुराहो प्रेमी जोड़ों के लिए भी काफी मशहूर है. यहां घूमने वालों की 12 महीनों भीड़ लगी रहती है. खजुराहो को यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत के एक धरोहर क्षेत्र के रूप में भी गिना जाता है.

पन्ना टाइगर रिजर्व

वहीं पन्ना जिले की बात करें तो यहां टाइगर रिजर्व में जंगल के राजा सहित वन्य प्राणियों को दिखने के लिए यहां सुबह से लेकर शाम तक लोगों की भीड़ रहती है. यहां जंगलों के बीच सैलानियों को घुमाया जाता है. ऐसे में यहां हर दिन जंगल की खूबसूरती को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोगों पहुंचते हैं. जो लोग प्रकृति और वन्य जीवन प्रेमी है, उनके लिए पन्ना राष्ट्रीय उद्यान है. जो कि खजुराहो के पास है.

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प्रकृति का आनंद लेने के लिए दर्शनीय स्थान है. यहां पाये जाने वाले बाघों के लिए पाई जाती है. जिन्हें सफारी ट्रिप के दौरान आसानी से देखा जा सकता है. जलीय प्रजातियों को करीब से देखने के लिए आप सफारी के दौरान केन नदी पर नाव चलाना भी चुन सकते हैं. राष्ट्रीय उद्यान की जीप सफारी एक शानदार अनुभव देता है. प्रत्येक वाहन में अधिकतम सात पर्यटक बैठते हैं.

ओरछा

निवाड़ी जिले के ओरछा किला झांसी से 16 किमी दूर बेतवा नदी पर है. किला देखने के लिए सैलानी दूर-दूर से आते हैं. किले की वास्तुकला बेहद शानदार और आकर्षक है. सैलानियों के लिए इस किले में कई तरह के आयोजन भी किये जाते हैं. यह किला सुबह 9 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक खुला रहता है. किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में बुंदेला वंश के राजा रुद्र प्रताप सिंह ने करवाया था. किले का मुख्य आकर्षण राजा महल है.

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इसके अलावा किले में शीश महल, फूल बाग, राय प्रवीण महल और जहांगीर महल हैं. इस किले के एक हिस्से को राम राजा मंदिर में बदल दिया गया है. जहां भगवान राम को राजा राम के रूप में पूजा जाता है. इस किले की वास्तुकला में बुंदेलखंडी और मुगल प्रभावों का मिश्रण देखने को मिलता है. इतिहास और आर्किटेक्चर लवर्स के लिए यह किला परफेक्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. . इस किले के एक हिस्से में फूल बाग है.

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