अजय नीमा, उज्जैन। महाशिवरात्रि महापर्व का विशेष महत्व होता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। महाकाल के दरबार में महाशिवरात्रि के तीसर दिन संध्या पूजन के बाद बाबा ने घटाटोप स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिए। भगवान का अभिषेक एकादश-एकादशनी रूद्रपाठ से किया गया और महाकाल को नीले रंग के वस्त्र धारण करवाए गए।

देवर्षि नारदजी खड़े होकर करतल ध्वनि और वीणा के साथ हरि कीर्तन करते थे। कीर्तन की इस पद्धति को नारदीय कीर्तन कहा जाता है। मंदिर में यह परंपरा पिछले 115 सालों से भी अधिक समय से चलती आ रही है। मंदिर प्रांगण में साल 1909 से कानडकर परिवार वंशपरम्परानुगत हरि कीर्तन की सेवा देती आ रही है।

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मंदिर प्रबंध समिति की ओर शिवकथा और हरि कीर्तन का आयोजन सांध्या 4.30 से 6 बजे तक नवग्रह मंदिर के पास संगमरमर के चबूतरे पर आयोजित किया जाता है। शनिवार को पंडित रमेश कानडकर ने कथा का गंधर्व के चरित्र का वर्णन किया। जिसमें भक्त और भगवान के युद्ध के बारे में बताया।

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शिवनवरात्रि के दौरान बाबा महाकाल के दिव्य और अलौकिक दर्शनों के बाद श्रद्धालु आत्मिक शांति और स्वर्गिक आनंद का अनुभव करते हैं। इस अलौकिक दर्शन का पुण्य लाभ श्रद्धालुओं को रात्रि होने वाली शयन आरती तक प्राप्त होता है।

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