उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में आज तड़के भस्म आरती के दौरान 3 बजे मंदिर के कपाट खोले गए। भगवान महाकाल का जल से अभिषेक पूजन किया गया। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद, शक्कर फलों के रस से बने पंचामृत से पूजन किया। बाबा महाकाल के मस्तक पर रजत चंद्र के साथ ओम और बेलपत्र अर्पित कर श्रृंगार किया गया।

भस्म आरती के दौरान महाकाल का भांग, चन्दन, सिंदूर और आभूषणों से राजा रूप श्रृंगार किया गया। बाबा महाकाल ने मस्तक पर तिलक, सिर पर शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुंडमाला और रजत जड़ी रुद्राक्ष की माला के धारण की। भगवान को फल और मिष्ठान का भोग लगाया। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल का आशीर्वाद लिया।

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इतिहास

बता दें कि उज्जैन में सन् 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।

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इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटीं – पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।

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