कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर (Jabalpur) की कैंट विधानसभा सीट (Cantt Assembly Seat) जो कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती थी, लेकिन इस सीट पर पिछले 30 साल से कांग्रेस का सूखा है। 26 साल तक कांग्रेस (Congress) के कब्जे वाली सीट पर आखिर ऐसा क्या हुआ कि यह सीट कांग्रेस के लिए सपना बन गई। एक बार फिर वहीं हालात बनते नजर आ रहे हैं। जिसकी वजह से कांग्रेस इस सीट पर वनवास काट रही है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
जिले की 8 विधानसभा सीटों में से भाजपा (BJP) अगर किसी सीट पर जीत का दावा कर सकती है, तो वह कैंट विधानसभा है। जिस पर बीजेपी का पिछले तीन दशक से कब्जा है। कांग्रेस कैंट विधानसभा के इसी किले को ध्वस्त करना चाहती है। यही वजह है कि कांग्रेस इस बार इस सीट से एक ऐसा चेहरा उतारना चाहती है जिस पर किसी को ऐतराज ना हो और सबकी सहमति भी हो। सर्व सम्मति और निर्विरोध चेहरे के चक्कर में कांग्रेस में एक ऐसे चेहरे पर चर्चा चल पड़ी है जो बाहरी होकर भी चर्चा में है, वो नाम है यामिनी सिंह का, यामिनी सिंह (Yamini Singh) वर्तमान कांग्रेस जिला अध्यक्ष और महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू (Jagat Bahadur Singh Annu) की पत्नी हैं।
यामिनी सिंह के नाम को लेकर शहर के साथ कैंट विधान सभा में एक आम चर्चा चल पड़ी है कि, अगर यामिनी सिंह को कैंट से विधायक की टिकट मिलती है तो कांग्रेस की जीत भले ही न हो, लेकिन मुकाबला कांटे का जरूर होगा और कांग्रेस ने एकजुटता दिखाई तो शायद कांग्रेस कैंट का किला फतह भी कर सकती है। अंदर खाने में चर्चा तो ये भी है कि महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नु खुद इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन चर्चा उनके धर्म पत्नी यानी यामिनी सिंह की चल रही।
कांग्रेस से लेकर आम जन मानस में भले ही यामिनी सिंह को लेकर चर्चा जोर मार रही हो, लेकिन भाजपा इसको कोई चुनौती नहीं मानती। बीजेपी नगर अध्यक्ष प्रभात साहू का कहना है कि कैंट विधानसभा में दिवंगत भाजपा नेता ईश्वर दास रोहाणी के काम और व्यवहार के बोए बीज का जादू ऐसा है की कांग्रेस कोई भी चेहरा उतार ले इससे भाजपा की सेहत को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
कांग्रेस और लोगों के बीच में भले ही यामिनी सिंह को लेकर चर्चा जोर मार रही हो लेकिन कांग्रेस का ही एक लोकल धड़ा अंदर ही अंदर इसका विरोध भी कर रहा है। सालों से इस इलाक़े में विधानसभा के लिए काम रहे नेता भले ही खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे, लेकिन ये खामोशी आने वाले तूफान से पहले की शांति है। वहीं कैंट विधानसभा में पिछले करीब 25 साल से कांग्रेस के सक्रिय नेता, 2 बार कैंट से पार्षद और चार बार कैंट बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे अभिषेक चौकसे चिंटू का कहना कि चाहे वो स्थानीय नेता हो या फिर स्थानीय लोग, सभी की इच्छा होती हैं की वहां का लोकल नेता ही चुनाव लड़े।
कैंट विधान सभा में शुरू से अब तक के विधायकों पर एक नजर
- 1967: मनमोहनदास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1972: मनमोहनदास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1977: दिनेश चंद मिश्रा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1980: दिनेश चंद मिश्रा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1985: चंद्र मोहन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1990: चंद्र मोहन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 1993: ईश्वरदास रोहाणी, भारतीय जनता पार्टी
- 1998: ईश्वरदास रोहाणी, भारतीय जनता पार्टी
- 2003: ईश्वरदास रोहाणी, भारतीय जनता पार्टी
- 2008: ईश्वरदास रोहाणी, भारतीय जनता पार्टी
- 2013: अशोक रोहाणी, भारतीय जनता पार्टी
- 2018: अशोक रोहाणी, भारतीय जनता पार्टी
साल 1967 में अस्तित्व में आई कैंट विधानसभा सीट जो कभी कांग्रेस की परंपरा सीट मानी जाती थी। इस बात का उदाहरण है कि इमरजेंसी में यानी 1977 में दिनेश मिश्रा यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते थे। 1967 से 1993 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्ज़ा रहा है। ये सीट कांग्रेस के हाथ से जाने का कारण भी चंद्र मोहन जो बाहरी प्रत्याशी होने के बाद भी दो बार कांग्रेस से विधायक बने, लेकिन ये विरोध अंदर-अंदर ही इतना पनपा की फिर 1993 से ये सीट कांग्रेस के लिए सपना बन गईं। अब देखना ये होगा कि कैंट विधानसभा में पिछले 26 साल से वनवास काट रही कांग्रेस क्या इस बार बाहरी प्रत्याशी को लाकर एक बार फिर खतरा मोल लेना चाहेगी।
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